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प्रासंगिक अस्तित्व (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

वह एक गाड़ी में सवार थी, जो अब तेज़ गति पकड़ रही थी। गाड़ी किसी और दिशा में जा रही थी और खिड़की से वह विपरीत दिशा में देख रही थी, जहां से वह चली थी। खिड़की से नज़ारे देखते हुए अचानक लगने वाले ब्रेक के झटकों से वह कभी सहम जाती, तो कभी उसे संभलने का सुखद अहसास सा होता। लेकिन तेज़ हवाएं उसे कभी सुखद लग रहीं थीं, तो कभी उसे झकझोर कर परेशान कर रही थीं। तेज़ हवाएं उससे बातें कर रहीं थीं या वह ख़ुद उनसे मोहित होकर उनसे बातें करना चाह रही थी, किसी को भी समझ नहीं आ रहा था। वह खिड़की बंद नहीं कर पा रही थी। उसकी सुंदर पोषाक हवा के झौंकों से फड़फड़ा रही थी। आबरू का ख़्याल आते ही वह अपना आंचल संभालने लगती थी।

"तुम हमेशा से यूं ही जवान लगती हो, ऐसा लगता है कि तुमने अभी-अभी जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखा है, इसलिए तुम अपने आप को संभालने की कोशिश करती हो, है न!" तेज़ हवा ने उससे पूछा।

"सच कह रही हो।" उसने अपनी पोषाक पर नज़र डालते हुए हाथों में रची मेंहदी और चूड़ियों की ओर देखते हुए कहा- "लेकिन आजकल केवल तीज-त्योहारों, समारोहों-आयोजनों, वर्षगांठों पर या मेहमानों के आने पर ही मुझे ऐसा ही अहसास कराया जाता है, जैसा तुमने अभी-अभी कहा। फिर भी मुझे यक़ीन है अपने इस चिर यौवन पर। लोग न मुझे छोड़ेंगे और न ही भूलेंगे।"

तभी तेज़ हवा के एक झोंके ने उसे झकझोर दिया।

"बस यूं ही तो तुम मुझे तंग करती रहती हो!" उसने फिर खिड़की से झांक कर विपरीत दिशा में देख कर कहा - "तुम जैसी तेज़ हवाओं के साथ तरक्की की गाड़ी कितनी भी रफ़्तार से दौड़ती रहे, तुम मुझे नुकसान तो पहुंचा सकती हो, लेकिन मेरे वजूद को तुम मिटा नहीं सकतीं!"

हवायें अब कुछ यूं थमने लगीं जैसे कि वे उसमें समा कर उससे कह रहीं हों -"दरअसल तुम वही हो न जिसे कोई भारतीय 'संस्कृति' कहता है, कोई 'तहज़ीब' और कोई 'जीवन-शैली' कहता है, है न!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 8:00pm
रचना पर समय देकर हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 8:45pm

सन्देश परक कथा हुई है आदरणीय शहजाद भाई | हार्दिक बधाई |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2017 at 11:58pm
इस रचना पटल पर उपस्थित हो कर रचना के अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब।
Comment by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 9:27pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, कथानक में कसावट,सटीक संवाद से भरपूर मानवीकरण की श्रेणी की लघुकथा का प्रतिनिधित्व करती संदेशपरक लघुकथा के हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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