बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
झूठ का इश्तहार खूब चला।
इस तरह कारोबार खूब चला।
कोने कोने में मुल्क के साहब,
आप का ऐतबार खूब चला।
गाँव तो गाँव हैं नगर में भी,
रात भर अंधकार खूब चला।
जो हक़ीक़त से दूर था काफी,
वो भी तो बार बार खूब चला।
नोट में दाग थे बहुत लेकिन,
नोट वो दाग़दार खूब चला।
सबने देखा है किस अदा के साथ,
बेवफा तेरा प्यार खूब चला।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदर्णीय कालीपद प्रसाद जी ग़ज़ल पसन्दगी के लिये आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय अफरोज़ सर मैं मुल्क की जगह देश कर देता हूँ। आपका बहुत बहुत शुक्रिया तनाफुर की ओर ध्यान दिलाने एवं ग़ज़ल पसन्दगी केलिये । सादर
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल \ बधाई स्वीकार करे आदरणीय राम अवध जी
आदर्णीय तस्दीक़ अहमद साहब उत्साह वर्धन के लिये सादर आभार
आदर्णीय महेन्द्र कुमार जी ग़ज़ल पसन्दगी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।
आदर्णीय सलीम रज़ा साहब बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल सराहना के लिये।
जनाब राम अवध साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
सबने देखा है किस अदा के साथ,
बेवफा तेरा प्यार खूब चला। ...बहुत ख़ूब!
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. राम अवध जी. सादर.
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