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ज़िन्दगी जो भी तेरे अहकाम रहे
..वो सब के सब मिरे मुक़ाम रहे |

अय्यार कम नहीं हर बशर-ए-मौजूदा
पर तेरी जिद के आगे सब नाकाम रहे |

हर रास्ता खत्म था इक दोराहे पर..
क्या कहें किस तलातुम बेआराम रहे |

रंग-ए-खूं की खबर हर सम्त थी फैली
हम फिर भी गफ़लत में सुबहोशाम रहे |

इक मौत ही है जो बेख़ौफ़ तुझसे
वरना जो लड़े गुजरे अय्याम रहे |

हर शख्स ख्वाहिशमंद है केवल इतना
कुछ न हो बस वो चर्चा-ए-आम रहे |

सतर ना छुप सकेगी फ़ाजिर अब तेरी
बस इक कलम और मिरा क़लाम रहे |


(अहकाम=आदेश; मिरे=मेरे; मुक़ाम=लक्ष्य,मंजिल; अय्यार=चालाक; बशर-ए-मौजूदा=आजकल का इंसान; तलातुम=बेचैनी; रंग-ए-खूं=व्यवहार,स्वभाव; सम्त=ओर,तरफ; गफ़लत=भूल,गलती; अय्याम=ज़माना,वक़्त; सतर छुपाना=नग्नता छुपाना; फ़ाजिर=व्यभिचारी,दुराचारी; क़लाम=रचना)

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Comment by विवेक मिश्र on July 11, 2010 at 12:46am
@ हाँ गणेश भाई. सही कहा आपने. धन्यवाद..
@ धन्यवाद राणा जी..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 10, 2010 at 12:41am
बस इक कलम और मिरा क़लाम रहे..........क्या बात है विवेक भाई .बेहद उम्दा.वाह!!! वाह!!!!!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 12:29am
वाह विवेक भाई वाह, ये ग़ज़ल काफी अच्छी बनी है, लग रहा है संपादक जी कुछ गुरु मंत्र आप को दे दिये है, हा हा हा हा , अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकार करे , धन्यवाद ,
Comment by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 6:09pm
@ गुरु जी और अमरेन्द्र जी- आपकी टिप्पणियों के लिए सहृदय धन्यवाद..
@ प्रभाकर सर- यूँ ही आपके सुझाव मिलते रहेंगे तो गलतियां सुधरती रहेंगी. बहुत-२ धन्यवाद..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 9, 2010 at 4:21pm
विवेक भाई,
//क्या कहें किस तलातुम में बेआराम रहे |//
"तलातुम+में" ?????????
ज़रा ध्यान दीजिये इस पर - मैंने इशारा दे दिया है !
Comment by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 4:03pm
bahut badhia lajabab

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