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हमें तुम भी मिटा पाए नहीं क्या

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नए हालात पढ़ पाए नहीं क्या ।

अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।

उठीं हैं उंगलियां इंसाफ ख़ातिर ।

तुम्हारे ख़ाब मुरझाए नहीं क्या ।।

सुना उन्नीस में तुम जा रहे हो ।

तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।

किया था पास तुमने ही विधेयक ।

तुम्हारे साथ वो आए नहीं क्या ।।

जला सकती है साहब आह मेरी ।

अभी तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।

है टेबल थप थपाना याद मुझको ।

अभी तक आप शरमाए नहीं क्या ।।

यूँ हक़ का द्रौपदी सा चीर खींचे ।

तरस संसद में कुछ खाये नहीं क्या।।

दुशाशन की अभी है जांघ टूटी ।

उन्हें अंजाम दिखलाए नहीं क्या ।।

यहां चाणक्य के बंशज बहुत हैं ।

वो मट्ठा जड़ में डलवाये नहीं क्या ।।

मिटाए जा रहे सदियों से हम तो ।

हमें तुम भी मिटा पाए नहीं क्या ।।

-- डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 7:55pm

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2018 at 5:56pm

आ0 समर कबीर सर सप्रेम आभार के सादर नमन ।

Comment by Samar kabeer on December 23, 2018 at 8:24pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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