For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिनके दिल मे कभी मेरा घर था

2122 1212 22

बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।
मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।

देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।
कितना प्यासा कोई समंदर था ।।

जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।

दर्द को जब छुपा लिया मैने ।
कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।

अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।
सूना सूना सा आज मंजर था ।।

जंग इंसाफ के लिए थी वो ।
कब ज़माने से मौत का डर था ।।

वो भी पहचान कर गए खारिज़ ।
जिनके दिल में कभी मेरा घर था ।।

क्यों कहूँ दुश्मनों को अब क़ातिल ।
दोस्त के हाथ मे ही ख़ंजर था ।।

मिल गयी है उसे जमानत फिर ।
साफ इल्ज़ाम जिसके सर पर था ।।

यूँ ही जज़्बात आ गए लब तक ।
कह गये जो भी दिल के अंदर था ।।


--डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 12:07pm

क्या कहने आदरणीय एक और खूब ग़ज़ल..बधाई

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 5:28pm

शुक्रियः सर । कर दिया ।

Comment by Samar kabeer on December 21, 2018 at 1:56pm

' मिल गयी है उसे जमानत फिर ।
साफ इल्ज़ाम जिनके सर पर था'

सानी मिसरे में 'जिनके' की जगह "जिसके" कर लें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 1:05pm

भाई राज नावादवी जी बहुत बहुत शुक्रिया । आपेक्षित सुधार आ0 कबीर साहब की इस्लाह के अनुसार कर दिया गया है ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 12:47pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ बहुत बहुत आभार । अत्यंत उपयोगी इस्लाह है सर अभी ठीक करता हूँ ।

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:41am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें. बाक़ी आदरणीय समर कबीर साहब ने अपना  बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया है. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 20, 2018 at 2:37pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

बाद मुद्दत के यह मुक़द्दर था'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था'

' प्यासा प्यासा कोई समंदर था'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'कितना प्यासा कोई समंदर था'

' जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
इश्क़ का हौसला न कमतर था'

इस शैर में मफ़हूम साफ़ नहीं है ।

' कुछ तो हैराँ मेरा सितमगर था'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'कितना हैराँ मेरा सितमगर था'

' बेख़ुदी में कदम बढ़े मेरे ।
कब ज़माने से मौत का डर था'

इस शैर का मफ़हूम साफ़ नहीं है ।

' लोग पहचान कर गए खारिज़'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'वो भी पहचान कर गए ख़ारिज'

' छोड़ कर चल दिया सफर में ही ।
हुस्न जो लाजवाब बेहतर था'

ये शैर हटा दें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
19 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service