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जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं (२९ )

जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं 
तो मान कर चलें कि तरक़्क़ी हुई नहीं 
**
जुम्लों के दम पे जीत की आशा न कीजिये 
चलती है बार बार ये बाज़ीगरी नहीं 
**
तहज़ीब क़त्ल-ओ-ख़ून की परवान चढ़ रही 
लगता है आदमी रहा अब आदमी नहीं 
**
उम्मीद रहगुज़र कोई मिलने की मत करें 
मंज़िल के वास्ते है अगर तिश्नगी नहीं 
**
चाहें ख़ुशी जो आप तो घर में तलाशिये 
बाजार-ए-ग़म में तो कभी बिकती ख़ुशी नहीं 
**
ताक़त उन्हें दिखाइए करते जो ज़ुल्म हैं 
कमज़ोर को सताना तो मर्दानगी नहीं 
**
मुश्किल में उस बशर का है सफ़र-ए-हयात मान 
इंसान जिसको होती है दीदावरी नहीं 
**
कर ले वुज़ू 'तुरंत' कि गंगा में ले नहा 
होगा न पाक दिल में जो पाकीज़गी नहीं 
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on February 21, 2019 at 11:05am

जी,बहतर है ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 1:52am

आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत आभार | सुखन -परवरी का अर्थ मैंने 

سخن پروری

promoting poetry, patronising the good word देखा था उसी हिसाब से प्रयोग कर लिया | वैसे भी इस शेर को हटाना ही ठीक होगा | हालाँकि मैंने इसे कुछ लोग बेबह्र ग़ज़ल के नाम से कुछ भी लिख रहे हैं उनके लिए लिखा था | 

Comment by Samar kabeer on February 19, 2019 at 2:16pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'ग़ज़लें बग़ैर बह्र के होती न शाइरी 
ये हरक़तेँ जनाब सुख़न-परवरी नहीं'

'सुख़न परवरी' का अर्थ,ज़िद,हठधर्मी होता है,ग़ौर करें,और ऊला में 'ग़ज़लें,और शाइरी पर विचार करें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 18, 2019 at 4:02pm

जनाब Surkhab Bashar साहेब ,आदाब ,आपकी हौसला आफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया | मुहब्बत बनाये रखें | 

Comment by Surkhab Bashar on February 18, 2019 at 3:01pm

आ. तुरंत जी आदाब बहुत खूब अशआर पढ़वे को मिले

लगता है आदमी रहा....... वाह वा

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