शहीदों को ख़िराजे अक़ीदत
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वो तिरंगे में लिपट गांव जब आया होगा |
तो हर इक शख़्स ने चुल्हा न जलाया होगा |
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क्या न गुज़रेगी किसी दिल पे बयाँ हो कैसे
आख़री फूल तिरे सर पे चढ़ाया होगा |
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जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने
याद गुज़रा उसे बचपन भी फिर आया होगा |
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अश्क करते है बयाँ ज़ीस्त जो बाक़ी मेरी
आज के बाद न महबूब का साया होगा |
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'तेरी ख़ुशबू से जवाँ रात है मेरी अब तक '
आख़री ख़त में ये पैग़ाम भी आया होगा |
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फ़ख़्र से सर भी उठा और नमी आँखों में
तेरा ताबूत पिता ने जो उठाया होगा |
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लाडली जो थी तेरी नूर जिसे कहता था
दीप उसने अभी ख़ामोश जलाया होगा |
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जो हँसाता रहा जीवन में सभी लोगों को
आज की रात हजारों को रुलाया होगा |
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अलविदा ! देश तुम्हे याद रखेगा बरसों
फ़र्ज़ ऐसा भी किसी ने न निभाया होगा |
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आद0 गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत जी सादर अभिवादन।आपने बेहतरीन ग़ज़ल से भारत माँ के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी है, मेरे भी भाव इस रचना में समाहित हैं। बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब और रचना की सराहना के लिए सादर आभार |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अमर शहीदों को अपनी रचना से अच्छा ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया आपने,बधाई स्वीकार करें ।
'जब तिरंगे में लिपट गांव वो आया होगा'
इस मिसरे में तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'वो तिरंगे में लिपट गाँव जब आया होगा'
'जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने
आज फिर याद भी बचपन उसे आया होगा'
इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,देखियेगा ।
जयहिंद
जय हिन्द
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