For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गहन अँधेरे में

रात-अँधेरे सारी रात

टटोलते कोई एक शब्द

स्वयं में स्माविष्ट कर ले 

जो तुम्हारे आने का उल्लास

चले जाने का विषाद

कभी बूँद-बूँद में लुप्त होती

खिलखिलाती रंग-बिरंगी हँसी

और प्यारी हिचकियाँ तुम्हारी

आँसू ढुलकाती, मेरी ओर ताकती

दीप-माला-सी तुम्हारी आँखें

कि मोहनिद्रा में जैसे

मेरे ओठों पर तुम

अपने शब्दों को खोज रही हो

यह प्रासंगकि नहीं है क्या

कि मैं रात-अँधेरे सारी रात

टटोल रहा हूँ वह एक शब्द

स्माविष्ट हो जिसके आवर्त में

तुम्हारी सारी उपरोक्त सर्ष्टि

पर घायल हताश रात में

अन्धकार की सीमा खोजते

विस्मय हत

हर नई सुबह यही जाना कि

बहुत कम थी सारी रात

तुम्हारे आने के सुख

और मजबूर चले जाने के दुख

को प्रथक करने के लिए

गहन धुँधलापन ओढ़े

आज जब मेरे समय के साँचे में

अवशेष पल फड़फड़ा रहे हैं

लिपट रही है मुझसे 

तुम्हारे हृदय की दुखती हुई धड़कन

तुम्हारी वह कष्टमयी मजबूरी

बिखरते खयालों में बरसती बेचैनी

यह जानो प्रिय कि

तुम्हारे आँसुओं की नमी

अभी मेरी आँखों में बाकी है

             -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 531

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on October 8, 2019 at 1:37pm

इस आत्मीय सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र सुशील जी।

Comment by vijay nikore on October 8, 2019 at 1:36pm

आत्मीय सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 12:21pm

वाह आदरणीय विजय निकोर जी हमेशा की तरह नायाब भावों के सैलाब को समेटे शानदार प्रस्तुति। दिल से बधाई सर।

Comment by Samar kabeer on October 7, 2019 at 7:47am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत ख़ूब, वाह, लाजवाब रचना,इस प्रस्तुति पर बधाई सरकार करें ।

Comment by vijay nikore on October 4, 2019 at 4:13pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र श्याम नारायन जी

Comment by Shyam Narain Verma on October 2, 2019 at 6:18pm
आदरणीय विजय जी, प्रणाम, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by vijay nikore on October 2, 2019 at 12:05pm

इस आत्मीय सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on September 25, 2019 at 8:04am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्द: और हमेशा की तरह प्रभावशाली सृजन, इस शानदार प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service