For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी का वह हिस्सा

अनपेक्षित तज्रिबों को  लीलती हुई

मन में सहसा उठते घिरते

उलझी रस्सी-से खयालों को ठेलती

गलियाँ पार करती  चली आती थी तुम

तब साथ तुम्हारा था

साहस हमारा

तुम्हारी मनोहर महक

थी दमकती हवाओं का उत्साह

और तुम्हारे चेहरे की चमक 

थी हमारी शाम की अजब रोशनी

और मैं ...

तुम्हारी बातें सुनते नहीं थकता था

हँसी के पट्टे पर कूदते-खेलते

बीच हमारे कोई सरहदें

सीमाएँ न थीं

समय के पल्लू में तब

सम्भावनाएँ थीं, साज़िशें न थीं

सोचता हूँ

अनमनी हुई शाम जब अपनी

लालटेन ले आती थी

उस पीली-पीली रोशनी में

तुम मेरे कंधे पर सिर टेके देर तक

तुम्हारी उँगलियाँ कुछ सोचती-सी

मेरे सीने की धड़कन पर रेंगती

रिश्ते का रहस्य खोजती-सी

गंभीर विचारों में गिरफ़्तार

भविष्य का हल खोजती-सी 

शून्यवत बनती शाम में

बैठे-बैठे नया स्वैटर बुन लेती थीं

मुद्दतें हुईं अब हमें एक संग

उस शाम की जाती रोशनी को नापते

आत्मा से आत्मा की पाती लिखते

पर तुम्हारा बुना हुआ वह स्वैटर

तुम्हारी उँगलियाँ

मेरे सीने से अभी तक संबंध रखती

तीखी गहरी बिना नींद की इस रात

मेरी साँसों को तरतीब दे रही हैं

और लगता है, अन्यमनस्क

तुम भी बेसब्री से दूरियाँ पार कर कहीं

ज़िन्दगी के हिस्से का वह सदमा सहलाती

रात देर तक उसे समझने की कोशिश करती

गहरे दर्द की गाँठ खोल रही हो

                     ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on October 25, 2019 at 10:57am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र विमल शर्मा ’विमल’ जी।

Comment by विमल शर्मा 'विमल' on October 16, 2019 at 1:36pm
वाह...अद्भुत बधाई आदरणीय
Comment by vijay nikore on October 14, 2019 at 8:58am

आदरणीय भाई समर कबीर जी, इस आत्मीय सराहना के लिए और सुझाव के लिए भी हार्दिक आभार। मैं अभी सुधार करता हूँ।

Comment by vijay nikore on October 14, 2019 at 8:55am

इतनी अच्छी सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र तेज वीर सिंह जी।

Comment by vijay nikore on October 14, 2019 at 8:54am

इतनी अच्छी सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र सुशील जी।

Comment by Samar kabeer on October 11, 2019 at 7:24pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, बहुत उम्द: और प्रभावशाली रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'अनपेक्षित तजुर्बों को लीलती हुई'

इस पंक्ति में 'तजुर्बों' शब्द ग़लत 

है,सहीह शब्द है "तज्रिबों" देखियेगा ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 11, 2019 at 11:11am

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी। बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by Sushil Sarna on October 10, 2019 at 5:06pm

और लगता है, अन्यमनस्क

तुम भी बेसब्री से दूरियाँ पार कर कहीं

ज़िन्दगी के हिस्से का वह सदमा सहलाती

रात देर तक उसे समझने की कोशिश करती

गहरे दर्द की गाँठ खोल रही हो..... वाह आदरणीय विजय निकोर जी अतीत के खूबसूरत लम्हों की परतें खोलती .... अंतर्मन के अहसासों की अभिव्यक्ति को शब्द दर शब्द अभिव्यक्त करती इस अप्रतिम रचना के लिए दिल से बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service