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1
दरिया है आँसुओं का कूचे में बेवफ़ा के
जाना वहाँ से यारा दामन ज़रा बचा के
2
इक बात ये बता दे मेरे हसीन क़ातिल
लेता है जान कैसे तू यार मुस्कुरा के
3
पूछेगी इक न इक दिन तुमसे भी ज़िन्दगानी
हासिल हुआ तुम्हें क्या ईमान को गँवा के
4
उल्फ़त की वादियों से रूठे रहेंगे कब तक
देखें तो आप इक दिन दिल इनसे भी लगा के
5
पूछा है आसमाँ से कल रात छत पे आ कर
जीता है किस तरह वो उजली शुआ छिपा के
6
साबित ज़रूर होगी अपनी भी बेगुनाही
रखले हज़ार ताले चाहे तो तू लगा के
7
उसका पता बता दे ओ ज़िन्दगी के मालिक
जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आभार।
आदरणीय कृष मिश्रा जी हौसला बढ़ाने के लिए आभार।
वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाई
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. रचना जी हार्दिक बधाई
आदरणीय सर् नमस्कार। जी सर्
इस्लाहके लिए आपकी आभारी हूँ। सादर।
//शुआ'अ" हटाकर क्या "किरण" लिख दूँ//
'किरण' ठीक रहेगा ।
'जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'बैठा है दूर दिल की जो धड़कनें चुरा के'
आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार।जी सहीह कहा आपने।सर् से 'है' हटाने के लिए पूछा है।सर् की राय का इंतज़ार है। सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'भाई नमस्कार। भाई हौसला बढ़ाने के लिए आभार।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आपकी तहेदिल से आभारी हूँ।
सर् बहुत ख़ूब सानी कर दिया आपने। फेयर में सुधार कर लेती हूँ।
सर्, संज्ञान के लिए आपकी आभारी हूँ।सर् "शुआ'अ" हटाकर क्या "किरण" लिख दूँ ।
'जो दूर जा बसा है मेरी धड़कनें चुरा के'
जी सर् ग़लती हो गई।क्षमा चाहती हूँ सर् है हटाने से ठीक हो जाएगा क्या।
सादर।
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
ग़ज़ल का आख़िरी मिसरा बह्र में नहीं है। सादर।
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