221 2121 1221 212
1
हमसे शगुफ़्तगी की तमन्ना करे कोई
अब और दर्द देने न आया करे कोई
2
आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई
सच्चा नहीं तो झूठा ही वादा करे कोई
3
करवट बदलने से भी कहाँ नींद आएगी
जब आँख से ही ख़्वाब चुराया करे कोई
4
जो राज़ को भी राज़ बना कर न रख सके
उस आदमी से दोस्ती भी क्या करे कोई
5
आज़ाद फ़िक्र ए आशियाँ से हो चुके हैं हम
तूफ़ान अब हवा में न लाया करे कोई
6
'निर्मल' बदल के देख ले जीने के रास्ते
ऐसा न हो तू बाद में शिकवा करे कोई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
//दर पर ख़ुदा के अर्ज़-ए-तमन्ना करे कोई
अब और दर्द देने न आया करे कोई'//
ये ठीक है ।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् , कुछ इस तरह से मतला कहने की कोशिश की है।
221 2121 1221 212
'दर पर ख़ुदा के अर्ज़-ए-तमन्ना करे कोई
अब और दर्द देने न आया करे कोई'
भाई लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर' जी आप सब मेरी मदद को आए। बहुत अच्छा लगा। बेहतरीन राय दी आपने। आभार।
आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार।आपकी राय भी बेहतर है। आभार।
आदरणीय आज़ी तमाम जी, नमस्कार।आपकी राय बहुत ख़ूब है।
आभार।
आ. भाई समर जी, आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ । सादर...
//भाई समर जी, मेरे हिसाब से मतला इस प्रकार करने से कुछ बात बन सकती है//
भाई,आपका सुझाव अच्छा है,लेकिनमैं चाहता हूँ कि रचना जी अपना मतला ख़ुद सुधारें ।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। ग़ज़ल के मतले के लिए जनाब लक्ष्मण धामी जी के शे'र का ऊला और आज़ी तमाम साहिब के शे'र का सानी मिसरा ले लिया जाए तो उम्दा मतला खल्क़ हो सकता है-
''यूँ दूर से न मुझ को पुकारा करे कोई
आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई" सादर।
आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ. भाई समर जी, मेरे हिसाब से मतला इस प्रकार करने से कुछ बात बन सकती है-
यूँ दूर से न मुझ को पुकारा करे कोई
ख्वाबों में ही करीब तो आया करे कोई
अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय रचना जी
गुस्ताखी माफ़ हो वैसे तो मैं अभी इस काबिल नही कि राय दे सकूँ फ़िर भी मेरे जहन में
ये जो आया आपसे साझा कर रहा हूँ अगर आपको उचित लगे तो मतले को कुछ यूँ कह सकते हैं
"दिल दूर दूर से ही न फेंका करे कोई
आकर करीब इश्क़ जताया करे कोई"
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