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ओबीओ की बारहवीं सालगिरह का तुहफ़ा

ग़ज़ल

212 212 212

तू है इक आइना ओबीओ
सबने मिल कर कहा ओबीओ

जो भी तुझ से मिला ओबीओ
तेरा आशिक़ हुआ ओबीओ

तुझसे बहतर अदब का नहीं
कोई भी रहनुमा ओबीओ

जन्म दिन हो मुबारक तुझे
मेरे प्यारे सखा ओबीओ

यार बरसों से रूठे हैं जो
उनको वापस बुला ओबीओ

हम तेरा नाम ऊँचा करें
है यही कामना ओबीओ

जो नहीं सीखना चाहते
उनसे पीछा छुड़ा ओबीओ

और जो सीखते हैं उन्हें
अपने सर पर बिठा ओबीओ

जो मेरे दिल ने मुझ से कहा
मैंने वो कह दिया ओबीओ

हम तेरे साथ आगे बढ़ें
रास्ता वो दिखा ओबीओ

तेरा सेवक हूँ मुद्दत से मैँ
और रहूँगा सदा ओबीओ

तू सदा यूँ ही फूले फले
है 'समर की दुआ ओबीओ

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:47pm

जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:46pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:45pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:43pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:42pm

मुहतरमा प्राची सिंह जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2022 at 3:41pm

जनाब अमीरुद्दीन साहिब आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on April 26, 2022 at 4:31pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, आपको भी ओबीओ की बारहवीं सालगिरह की हार्दिक बधाई I 

दो अशआर आपको ख़ास तौर पर पसंद आये इसके लिये आपको धन्यवाद कहता हूँ I

इन बारह वर्षों में ओबीओ ने क्या कुछ नहीं देखा , कई मित्र हमें छोड़ कर इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुखस्त्च्ले गये ,उन्हें ओबीओ कभी भुला नहीं पाएगा I 

//लेकिन एक बात अवश्य कहना चाहूँगा, इस मंच से कोई रूठा नहीं है. इस मंच से कोई रूठ भी नहीं सकता है. अलबत्ता, रहिवासी ही इस घर से बड़े हो गये हैं. इतने कि, या तो निजी व्यस्तता आड़े आने लगी है, जो कि एक चुभती हुई सच्चाई है. या फिर, घर का आचार-व्यवहार ही कइयों को निरंकुश प्रतीत होने लगा है. यह नितांत व्यक्तिगत सोच का पहलू अवश्य हो, परंतु, यह भी एक हकीकत है//

आपकी बात से सहमत हूँ, लेकिन भक्त भगवान से रूठ जाता है, बंदा ख़ुदा से रूठ जाता है , इसी तरह कुछ ऐसेईसे ही सदस्य हैं जिन्हें मैं ज़ाती तौर पर जानता हूँ और ऊन्हें मनाने के जतन भी कई बार कर चूका हूँ इसलिये ये शे`र बे साख़्ता हो गया I 

ग़ज़ल आपको पसंद आ गई लिखना सार्थक हुआ ,इसके लिये आपका आभारी हूँ I 

दुआ करता हूँ कि ओबीओ इसी तरह ख़ूब फूले फले I 

Comment by Samar kabeer on April 26, 2022 at 4:09pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद I 

Comment by Samar kabeer on April 26, 2022 at 4:08pm

प्रिय अनुज मयंक द्विवेदी आदाब , ग़ज़ल की सराहना के लिये बहुत धन्यवाद I 

Comment by Samar kabeer on April 26, 2022 at 4:05pm

जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद I 

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