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इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली

————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..

————
एक तमन्ना थी इस दिल में भी
आएंगे वो दिल की महफ़िल में भी
बन सकी न फूल तमन्ना की
थी जो मासूम कली
इश्क़ की बात चली..
————

मैं भटकना भी जो चाहूँ तो कहाँ जाऊँगा
हर सू, हर शै में तुझे ही पाऊँगा
बढ़ जाएँ क़दम उस जानिब जो हैं
तेरा कूचा-ओ-गली
इश्क़ की बात चली..
————
सिर्फ़ एक बार मुख़ातिब हुई आवाज़ तेरी
है बड़ी यादगार मेरे लिए एक वो घड़ी
ज़हन में उतर गई इतनी मीठी
जैसे मिसरी की डली
इश्क़ की बात चली..

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Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 18, 2012 at 11:25pm

बहुत सुन्दर गीत है,संदीप जी.

मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा शाम यादों में ढली बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.

Comment by Dr. Shashibhushan on March 18, 2012 at 11:16pm

आदरणीय वाहिद जी,
सादर !
ढूँढते-ढूँढते पहुँच ही गया !
प्रेम और स्नेह की नहीं बल्कि इश्क की भावनाओं का अद्भुत, सम्मोहक वर्णन !
क्या बात है ??? बड़ा आनुभविक वर्णन हुआ है ! बधाई ! हार्दिक बधाई !!

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