For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ मंच के सुधिजनों पिछले दिनों एक रचना पोस्ट की थी जिसे दुर्भाग्यवश मुझे डिलीट करना पड़ गया था| उसी रचना को आधार मान कर एक और रचना की है उन दोनों को ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ दोनों एक ही बह्र और एक ही काफ़िये पर आधारित हैं| पहली रचना कुछ दिन पूर्व ओ बी ओ पर ही प्रकाशित की थी दूसरी अभी हाल में ही लिखी है| मैं नहीं जानता कि ये दोनों ग़ज़ल की कसौटी पर खरी उतरती हैं या नहीं| मंच पर उपस्थित विद्वतजनों से आग्रह है कि वे मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराएँ और मार्गदर्शन करें| विशेष तौर पर प्रधान संपादक आदरणीय योगराज जी, सौरभ पाण्डेय जी और वीनस केसरी जी से अनुरोध है कि यहाँ दृष्टिपात करें और यथोचित सलाह दें| जितना मैंने सीखा है उस हिसाब से ये रचनाएँ गैर मुरद्दफ़ हैं| बह्र है २२१२-१२२ और काफ़िया है 'आना'|

(सुधारे गए या नए जोड़े गए शे'रों को लाल रंग में दिया है)

(१)
सीखा है बस निभाना
रिश्ते न आज़माना;

हैं ज़िंदगी रवाना,
आना है और जाना;

हँसता है आदमी जो,
तौफ़ीक़ या दीवाना;

किस जुर्म की सज़ा है,
बिखरा  है आशियाना;

आँखों में अश्क़ लाये,
इक दर्द का तराना;

फूलों से मन भरा तो,
काँटों से दिल लगाना;

ऐ ज़ीस्त है गुज़ारिश,
तू मेरे घर भी आना;

कुछ प्यार लेके दिल में,
उनसे नज़र मिलाना;

अच्छा नहीं चलन ये,
मासूम को सताना;

महबूब से मुहब्बत,
अच्छा नहीं छुपाना;

समझेगा पीर कैसे,
बेदर्द ये ज़माना;

(२)
सीखा नहीं निभाना,
वादा बना फ़साना;

उनकी ये है रवायत,
क़समों को तोड़ जाना;

भूला नहीं है बचपन,
बेहद हसीं ज़माना;

माँ याद है अभी तू,
दिल से तेरा लगाना;

लज़्ज़त भरा कलेवा,
तेरा हाथ से खिलाना;

वो रूठना मेरा और,
तेरा मुझे मनाना ;

दिल आज कितना ख़ुश है,
कोई गीत गुनगुनाना;

वो दिन थे कितने सुन्दर,

मुश्किल उन्हें भुलाना;

है सालता अभी तक,

तेरा वो एक बहाना;

समझा रहा हक़ीक़त,

सपना मगर सजाना;

लौटा है आज फिर वो,
मौसम बड़ा सुहाना;

आया वली है दर पर,
नज़रें ज़रा बिछाना;

तू झाँक ले गिरेबां,
आँखें तभी दिखाना;

खा कर गिरा है ठोकर,
हाथों से तुम उठाना;

मौक़ा मिला जहाँ भी,
चुटकी में तुम भुनाना;

Views: 1539

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 11, 2012 at 1:23pm

हार्दिक आभार राजीव जी! आपसे सबसे ही सीखने को मिलता है तो इस तरह की कोशिशें मुमकिन हो पाती हैं| :-))

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 9, 2012 at 9:07am

बहुत सुन्दर गीत संदीप जी.आपकी कोशिशें भी लाजबाब होती हैं.

तू झाँक ले गिरेबां, आँखें तभी दिखाना;

खा कर गिरा है ठोकर, हाथों से तुम उठाना;

खूबसूरत पंक्तियाँ.

Comment by वीनस केसरी on April 8, 2012 at 12:47am

सादर धन्यवाद एडमिन महोदय! :-)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 7, 2012 at 7:35pm

सादर धन्यवाद एडमिन महोदय! :-)

Comment by Admin on April 7, 2012 at 7:11pm

चलिए संदीप जी, मैं आपका काम आसान किये देता हूँ , मुरद्दफ़ को बदल कर गैर मुरद्दफ़ किये देता हूँ :-)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 7, 2012 at 7:06pm

*'नहा दो' कर के स्थान पर 'नहा' धो कर पढ़ें| :))

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 7, 2012 at 7:03pm

वीनस जी, इस बार गैर मुरद्दफ़ में बदलना भूल गया| अगर अभी बदलता हूँ तो पोस्ट पेंडिंग हो जाएगी अतः देर रात बदल दूंगा| आप हाथ धो कर नहीं बल्कि नहा दो कर मेरे पीछे पड़ जाईये ;-))))) मुझे बहुत ख़ुशी होगी कि कम से कम कोई तो मेरे ऊपर इतनी मेहनत कर रहा है और मुझसे भी करवा रहा है|

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2012 at 5:56pm

संदीप जी, अब तो पोस्ट में मुरद्दफ़ को गैर मुरद्दफ़ लिख दें :))))

एक शेर छूट गया है ..

लज़्ज़त भरा कलेवा,
तेरा हाथ से खिलाना;

मैं भी आपके पीछे हाँथ धो कर पड़ गया हूँ  .... हा हा हा

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2012 at 5:51pm

गणेश भाई, मैंने अपना कमेन्ट पोस्ट करने के बाद पेज रिफ्रेश किया तो आपका कमेन्ट दिखा था और खुशी हुई कि आप पर स्थिति स्पष्ट हुई है, मुझे खुशी हुई कि नाचीज़ आपकी जानकारी का जरिया बन सका, मेरे सीखने के क्रम में मुझे जहाँ जहाँ से भी जानकारी प्राप्त होती है इकट्ठा करता रहता हूँ जिसमें ओ बी ओ मंच भी शामिल है, सीखने के क्रम में मुझे जो बातें मालूम होती हीं उन्हें ओ बी ओ मंच पर साझा करने में भी कभी कोताही नहीं बरती है आगे भी यही सोच है,

मंच से सनातनी छ्न्द पर कुछ सीखने की इच्छा है क्योकि हिन्दी छ्न्द की मुझे कोंई जानकारी नहीं है और यहाँ छ्न्द पर भी अच्छा काम हो रहा है
इसलिए ही मैं महा उत्सव और चित्र से काव्य तक पर आपनी प्रतिक्रिया देने से बचता रहा हूँ



मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 7, 2012 at 3:34pm

भाई वीनस जी, मनन तो मैं सदैव ही करता रहता हूँ और अपने आप को हमेशा एक विद्यार्थी समझ आप सभी से सीखते रहता हूँ , बहरहाल आप अपनी latest टिप्पणी से पहले आई मेरी टिप्पणी को पढ़ ले, बात स्पष्ट हो चुकी है, मनन हेतु सुझाव पर आपको कोटिश: आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service