इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..
————
एक तमन्ना थी इस दिल में भी
आएंगे वो दिल की महफ़िल में भी
बन सकी न फूल तमन्ना की
थी जो मासूम कली
इश्क़ की बात चली..
————
मैं भटकना भी जो चाहूँ तो कहाँ जाऊँगा
हर सू, हर शै में तुझे ही पाऊँगा
बढ़ जाएँ क़दम उस जानिब जो हैं
तेरा कूचा-ओ-गली
इश्क़ की बात चली..
————
सिर्फ़ एक बार मुख़ातिब हुई आवाज़ तेरी
है बड़ी यादगार मेरे लिए एक वो घड़ी
ज़हन में उतर गई इतनी मीठी
जैसे मिसरी की डली
इश्क़ की बात चली..
Comment
बड़े भईया,
आपकी प्रशंसा सदैव ही अपना अलग स्थान रखती है| आभार आपका,
इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
क्या बात बहुत बहुत खूबसूरत तरीक से कही गयी रचना वाह वाह !!! संदीप जी हार्दिक बधाइयाँ आपको !!
हार्दिक आभार महिमा जी! :))
हार्दिक आभार सरिता जी! आपकी ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया.. :))
आदरणीय राजीव जी,
हार्दिक आभार सादर,
भ्रमर जी धन्यवाद.. बात इसी गीत में चली और यहीं खत्म भी हो गई.. :)))
bahut khubsurat ghazal sandip ji !!!!!!!
garmi me thandak ka ehsas.......
बहुत सुन्दर गीत, संदीप जी.
मैं भटकना भी जो चाहूँ तो कहाँ जाऊँगा हर सू, हर शै में तुझे ही पाऊँगा बढ़ जाएँ क़दम उस जानिब जो हैं तेरा कूचा-ओ-गली इश्क़ की बात चली.. लाजबाब !
एक तमन्ना थी इस दिल में भी
आएंगे वो दिल की महफ़िल में भी
बन सकी न फूल तमन्ना की
थी जो मासूम कली
इश्क़ की बात चली..
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