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उफ़! .. बड़ी गर्मी है!

उफ़!.... बड़ी गर्मी है!
घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हैं
एयर कंडीसन ऑन है
बहुत अच्छा लग रहा है!
तभी,
बिजली चली गयी!
थोड़ी देर बाद ही
तन से, निकलने लगे पसीने!
ओह कैसी चिपचिपाहट,
कपड़े हो गए गीले!
खिड़की खोलकर झाँका
एक गर्म हवा का झोंका
मानो चेहरे की कोमलता को
निचोड़ गया
तन को झकझोड़ गया!
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
मैं पांचवी मंजिल से झांक रहा था
देखा,
कुछ मजदूर इस गर्मी में भी
मन लगाकर,
हंसमुख चेहरे दिखाकर
काम कर रहे हैं.
कुछ मजदूरिने भी,
उसी उत्साह से
ईंटें उठाकर कारीगर को दे रही हैं
उफ़! इस गर्मी को कैसे वे लोग झेल रही हैं!
मेरे बच्चे वीडियो गेम खेलने में ब्यस्त हैं
और उनके बच्चे धूप में भी मस्त हैं
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
गर्मी के कारण मैं बाजार नहीं जा सका
घर के लिए जरूरी सामान नहीं ला सका!
कल की सब्जी से काम चला ली
आखिर किस दिन के लिए फ्रिज ली थी
उफ़!.... बड़ी गर्मी है !
खेतों में किसान पौधों को पानी दे रहे थे.
तैयार सब्जियों को तोड़ किनारे कर रहे थे.
उनकी घर की औरतें भी साथ दे रही थीं.
सब्जियों को टोकड़ी में रख रही थी.
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
इस गर्मी में बिजली का न होना,
कितना दूभर होता है!
तभी देखा, बिजली मिस्त्री
बिजली के खम्भे पर चढ़
तारों को जोड़ रहे थे.
हमारी सुविधा के लिए ही
वे अपने तन को मरोड़ रहे थे
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
बगिया में कोयल,

शायद यही बोल रही थी
कुहू कुहू में, वह सबको तौल रही थी
एक गौरैया, तिनका उठाकर
ले जाती है, डाली पर
अपने घर को,
वह भी तो सजा ले,
वृक्षों की डाली पर!
बगीचे में हवा अच्छी है
आम की फलियाँ अभी कच्ची हैं
पीपल में नयी पत्तियां निकल आई हैं
बेल भी नयी पत्तियों से भर गया है
बेल का फल, लेकिन पक गया है.
बेल का शरबत, पेट को ठंढा रखता है!
आम का शरबत, धूप के लू से बचाता है!
ककड़ी- खीरे और तरबूज
खा के लेट जाओ भूपर
जहाँ हो हरी हरी दूब!
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
प्रकृति ने गर्मी के मौसम, हैं बनाये
ताकि रबी फसल तैयार हो
खेत में ही पक जाएँ
खलिहान में, उससे दाने निकाले जाएँ
तभी तो पेट की भूख मिटेगी
भूख मिट जाय, तभी तो गर्मी लगेगी
अन्यथा पेट की आग
बड़ी तेज होती है!
जलाकर रख देती है इंसानों को
बन जाते है, शैतान और हैवान
पेट की आग बुझाने को
पेट की आग को न भड़कने दो!
उसे समय से शमन कर
बाहर की गर्मी को समझने दो!
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
गर्मी में ही दावानल सुलगता है
जला कर खाक कर देता है
बड़े बड़े जंगलों को
झोपड़ियाँ तो जलती हैं
पर यह जला डालता है
बड़े बड़े महलों को!
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
प्रकृति के साथ जियो
और उसे आबाद रहने दो
अगर जंगल और पेड़ काटोगे तो
इसी तरह गर्मी में झुलसोगे!
ग्लोबल वार्मिंग के ताप से, तपोगे
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
बिजली कैसे बनेगी?
जब
न ये जंगल होंगे, न होगी बरसात
आखिर हम, कितना कोयला करेंगे आयात!
उफ़!.. बड़ी गर्मी है!
घर के बाहर हो, अगर वृक्षों की छाया
शीतल और मंद हवा से, जुड़ा जाय काया
वातानुकूलन, भला इससे अच्छा क्या होगा
शुद्ध आक्सीजन के साथ, खुशबू का मजा होगा.
वृक्ष को जल दें, वे देंगे फल और छाया
परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया!
परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया!

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 7, 2012 at 4:47am

प्रिय छोटू सिंह जी, हार्दिक आभार !

आपको भी गर्मी महसूस हुई, हमें महसूस हुई तो इस रचना का जन्म हुआ!... 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 7, 2012 at 4:45am

आदरनीय कुशवाहा जी, सादर अभिवादन!

गर्मी के मौसम में पेट गरम हो जाता है

प्रकृति  ने उसका भी उपाय  सुझाया है!

सर्दी गर्मी का अहसास प्रभु ने ही कराया है.

आपका स्नेह क्या प्रभु के आशीर्वाद से कम है?

गुरुजनों का हो गर साथ फिर किस बात का गम है!

आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2012 at 9:11pm

आदरणीय   सिंह  साहब  ji  .

gaagar में सागर भर दिया.
laba lab है . 
होल sail  मैं नहीं फुटकर मैं परोसिये 
garmi का ये mausam है kam kam toliye
hajma हो ख़राब अगर तो दावा आपकी है कारगर
पांचवीं  मंजिल से चढ़ बार बार नजारा घोलिये. 
बहुत सुन्दर, प्रवाह माय, सन्देश परक रचना. 
बधाई तो वास्तव मैं बनती है. तो de dii बधाई. स्वीकार करें कृपया.  
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 8:50pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी, नमस्कार! रचना पसंद करने केलिए आभार!
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 8:31pm
कुमार गौरव जी, आपको रचना पसंद आयी इसके लिए आभार!
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 8:30pm
माननीय आशीष जी, सादर अभिवादन! आपको मेरी रचना में कई बातें देखने को मिली ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है ! मैंने तो सिर्फ अनुभव साझा किया था! आपका आभार! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 7:28pm

जवाहर लाल जी आज की सामयिक रचना लिखी है आपने गर्मी का भी खूब एहसास करा दिया.बहुत अच्छी रचना |

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 7:08pm

जवाहर सर सादर प्रणाम

गरीबी जो न कराये इन्सान से. बहुत अच्छी रचना आपकी. 
Comment by आशीष यादव on May 6, 2012 at 5:50pm
इस कविता के बहाने कई सारी बातेँ बता दी आपने। भेद बता दिया अमीरी-गरीबी का। फिर ये भी बता दिया की कौन शरबत कितना लाभदायक है। और ये भी कि ग्लोबल वार्मिँग के लिए जिम्मेदार तत्व क्या हैँ।
शानदार कृति पर बधाई

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