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किसान,
प्रतीक अथक श्रम के
अतुल्य लगन के ;
प्रमुख स्तंभ
भारतीय अर्थव्यवस्था के,
मिट्टी से सोना उगानेवाले
आज उपेक्षित हैं
परित्यक्त हैं
अपने ही "कर्जदारों" द्वारा
चुनी सरकारों द्वारा ;
फंसे हैं मकड़जाल में
महाजनों, सूदखोरों,
बिचौलियों के,
जा चुके हैं हाशिये पर
एक कृषिप्रधान देश में
बदलते परिवेश में ;
क्षुधा-संग्राम हेतु
शस्त्र बनाने वाले,
स्वयं निःशस्त्र हैं
अवसाद से त्रस्त हैं ;
विवश हैं
आत्महत्या के लिए,
कृषि छोड़ने के लिए,
आवश्यकता है
स्थिति सुधारने की,
उन्हें उबारने की ;
अन्यथा
देर हो जाएगी
बहुत देर...|

 

(नोट - चूंकि किसान का कर्जदार पूरा देश होता है, इसी मायने में "कर्जदार" शब्द का प्रयोग किया गया है)

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on August 4, 2012 at 1:53pm

आवश्यकता है
स्थिति सुधारने की,
उन्हें उबारने की ;
अन्यथा
देर हो जाएगी
बहुत देर...|,किसानी पर सुंदर रचना गौरव जी ,सत्य में हम किसानो के कर्जदार है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2012 at 1:51pm

//अवसाद से त्रस्त हैं ;
विवश हैं
आत्महत्या के लिए,
कृषि छोड़ने के लिए, //

विचारपगी रचना के लिये धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

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