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ये माटी सभी की कहानी कहेगी ||

कहाँ बदन पर सजी रंगोली
कहाँ हुआ उसका खनन
कब कोई उसमे विलीन हुआ
कहाँ हुआ पूजा हवन
सब युगों युगों तक निशानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |

कहाँ प्यासे जिस्म में पड़ी दरारें
कहाँ निर्बाध जल में नहाया बदन
कहाँ इंसां ने बंजर बनाया
कहाँ लहलहाया मदमस्त चमन
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |

कहाँ मेढ़ों ने करे विभाजन
कहाँ जुड़े सांझे आँगन
कहाँ सुने मिलन के गीत
कहाँ बरसा विरह का सावन
इन दस्तावेजों से भरी जिंदगानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |

कब क्यूँ भड़की उर से ज्वाला
कब क्यूँ बहा क्रोध का लावा
कब कहाँ विध्वंसक प्रलय आई
कब रचा गया इतिहास निराला
जब तलक काल चक्र की मनमानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |

जब तब कहीं सिंघासन बदला
हर बार नया राज तख़्त बदला
जब तब युग की तारीखें बदली
इस माटी का कोई रंग ना बदला
जब तलक रवि, चाँद की मेहरबानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी ||
***********************************

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:17pm
तो क्या यह गीत नहीं है?
फिर इसे गीत का रुप दे देना चाहिए,क्योंकि यह गीत के काफी नजदीक है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 7:03pm

हार्दिक आभार विन्ध्येश्वरी जी मात्राओं की तरफ ध्यान ही नहीं दिया क्यूंकि गीत समझ कर लिखा ही नहीं 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 6:57pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी!एक अच्छे गीत के लिये अच्छी बधाई।
बस मात्राओं का भटकाव मजा थोड़ा किरकिरा कर रहा है।
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 2:55pm

हार्दिक आभार लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 2:46pm
ये माटी सभी की कहानी कहेगी, बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है,
आदरणीया राजेश कुमारी जी, हार्दिक बधाई 

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