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मुझे तलाश है उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

निज लक्ष्य  से ना हटें कभी 

अटूट  निश्चय पे डटें सभी 

ना सत्य वचन  से फिरें कभी 

ना निज मूल्यों से गिरें कभी 

जो गर्दन नीची कर दे 

मुझे तलाश है उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

दूजों के दुःख अपनाएँ हम 

 अक्षत पुष्प बरसायें हम 

नेह  का निर्झर  बहायें हम

जग  के संताप मिटायें हम

भगवन ऐसा अवसर दे 

मुझे तलाश है उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

प्रीत प्रकृति नव्य सृजन करे 

पूर्ण  समर्पित हिय भाव भरे 

तन मन  में सिमटी व्याधि हरे 

कलुषित कलंकित  भाव झरें 

मति संयत  उन्नत कर दे 

मुझे तलाश है उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

नई शक्ति का समावेश हो 

अनुद्दत आचरण विशेष  हो 

ना आक्रोश  ना आवेश हो 

नव्यजीवन सूत्र विशेष हो 

नवगीतों में नव स्वर दे   

मुझे तलाश है उस उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

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Comment

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Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 1:41am

अत्यंत सुन्दर रचना आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपकी कलम में साक्षात् सरस्वती विराजमान हैं !

Comment by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 12:49am

नई शक्ति का समावेश हो 

अनुद्दत आचरण विशेष  हो 

ना आक्रोश  ना आवेश हो 

नव्यजीवन सूत्र विशेष हो 

नवगीतों में नव स्वर दे   

मुझे तलाश है उस उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

sundar aur utprerak rachna ...bahut bahut badhai ... 

Comment by Satish Agnihotri on September 23, 2012 at 12:19am

मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |

निज लक्ष्य  से ना हटें कभी

अटूट  निश्चय पे डटें सभी

ना सत्य वचन  से फिरें कभी

ना निज मूल्यों से गिरें कभी .......

कुछ जादू सा है आपकी पंक्तियों में ......ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए आपको बधाई ............

कृपया ध्यान दे...

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