तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं
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Comment
नम हो गया अंश वक़्त का हाथ से फिसलता ही नहीं जम गए नासूर वफ़ा के अब मरहम फलता ही नहीं
बहुत ही उम्दा सोंच की रचना
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी
हार्दिक आभार संजय राजेन्द्र प्रसाद यादव जी
"तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं"
"आपको बहुत-बहुत बधाई राजेश कुमारी जी"
बे-वक्त,बे-दर्द,बे-वफ़ा,............!!!
प्रिय सीमा जी हार्दिक ख़ुशी हुई ये नज्म आपके दिल तक पहुंची आभारी हूँ
प्रिय प्राची जी आपको नज्म पसंद आई मेरी लेखनी सफल हुई हार्दिक आभार
बहुत खूबसूरत नज़्म
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं .......वाह बहुत सूक्ष्म अवलोकन ...
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश जी..
आदरणीया राजेश कुमारी जी , दिल को छूती सी अभिव्यक्ति..
बहुत बहुत धन्यवाद लक्ष्मण जी
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