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तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं
************************

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Comment by नादिर ख़ान on September 30, 2012 at 8:04pm

नम हो गया अंश वक़्त का हाथ से फिसलता ही नहीं जम गए नासूर वफ़ा के अब मरहम फलता ही नहीं

बहुत ही उम्दा सोंच की रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 28, 2012 at 9:17am

बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 27, 2012 at 10:41am

हार्दिक आभार संजय राजेन्द्र प्रसाद यादव जी 

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on September 27, 2012 at 10:34am

"तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं"

"आपको बहुत-बहुत बधाई राजेश कुमारी जी"
बे-वक्त,बे-दर्द,बे-वफ़ा,............!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 9:04pm

प्रिय सीमा जी हार्दिक ख़ुशी हुई ये नज्म आपके दिल तक पहुंची आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 9:02pm

प्रिय प्राची जी आपको नज्म पसंद आई मेरी लेखनी सफल हुई हार्दिक आभार 

Comment by seema agrawal on September 26, 2012 at 6:55pm

बहुत खूबसूरत नज़्म 

नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं .......वाह बहुत सूक्ष्म अवलोकन ...

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश जी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 6:01pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , दिल को छूती सी अभिव्यक्ति..

तू ऐसा ख्वाब है 
जिस्म में ढलता ही नहीं 
मेरा ही हमसाया 
जो मेरे साथ चलता ही नहीं..
दर्द और भाव पाठक के साथ एक रिश्ता सा बनाते महसूस होते हैं... हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 1:31pm

 बहुत बहुत  धन्यवाद लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2012 at 1:06pm
सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीया राजेश कुमारी जी, सच है नासूर बनने से पूर्व ही मरहम 
लगाना होगा, वर्ना तो -  नम हो गया अंश वक़्त का,हाथ से फिसलता ही नहीं
                              जम गए नासूर वफ़ा के,अब मरहम फलता ही नहीं 
बधाई 

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