मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
निज लक्ष्य से ना हटें कभी
अटूट निश्चय पे डटें सभी
ना सत्य वचन से फिरें कभी
ना निज मूल्यों से गिरें कभी
जो गर्दन नीची कर दे
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
दूजों के दुःख अपनाएँ हम
अक्षत पुष्प बरसायें हम
नेह का निर्झर बहायें हम
जग के संताप मिटायें हम
भगवन ऐसा अवसर दे
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
प्रीत प्रकृति नव्य सृजन करे
पूर्ण समर्पित हिय भाव भरे
तन मन में सिमटी व्याधि हरे
कलुषित कलंकित भाव झरें
मति संयत उन्नत कर दे
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
नई शक्ति का समावेश हो
अनुद्दत आचरण विशेष हो
ना आक्रोश ना आवेश हो
नव्यजीवन सूत्र विशेष हो
नवगीतों में नव स्वर दे
मुझे तलाश है उस उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
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Comment
बहुत बहुत हार्दिक आभार अशोक कुमार रक्तेला जी
दूजों के दुःख अपनाएँ हम
अक्षत पुष्प बरसायें हम
नेह का निर्झर बहायें हम
जग के संताप मिटायें हम
भगवन ऐसा अवसर दे
वाह! बहुत सुन्दर रचना.हार्दिक बधाई स्वीकारें.
प्रिय विशाल चर्चित जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई
आलस्य एवं निराशा की नीरवता को तोड्ती हुई.......तन - मन के तारों को नव उमंग - नव उत्साह से झकझोरती हुई इस अत्यन्त उत्कृष्ट रचना को नमन !!!!!
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपकी प्रतिक्रिया से तो लेखनी को और उर्जा मिलती है मन प्रसन्न हो गया हार्दिक आभार
इस ऊर्जस्वी और ओजस्वी रचना के लिये हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेशजी.
सादर
प्रिय रेखा जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको रचना पसंद आई स्नेह बनाए रखिये
नई शक्ति का समावेश हो
अनुद्दत आचरण विशेष हो
ना आक्रोश ना आवेश हो
नव्यजीवन सूत्र विशेष हो
नवगीतों में नव स्वर दे
मुझे तलाश है उस उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |,अति सुंदर रचना आदरणीया राजेश जी ,हार्दिक बधाई
प्रिय प्राची जी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
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