For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“हैलो पूर्वा, शाम साढ़े सात बजे तक तैयार रहना, आज मिस्टर अग्रवाल की बिटिया का महिला संगीत है और रात को डिनर के लिए चलना है” अक्षय नें अपनी पत्नी से फोन पर कहा. पूर्वा नें हामी भरी और पार्टी के कपडे निकालने के लिए अल्मारी खोली. उफ़! कितनी भारी भारी साड़ियाँ, पर आज तो कुछ सौम्य सा पहनने का मन है, सोचते हुए पूर्वा नें पाकिस्तानी कढाई का एक बेहद खूबसूरत सूट निकला और तैयार होने लगी.

आँखों का हल्का सा मेकअप, आई लाईनर, काजल, बालों का ताजगी भरा स्टाईल, चन्दन का इत्र, छोटी सी बिंदी, हल्की सी लिपस्टिक, एक कलाई में घड़ी, दूसरी में सोने के कंगन, हीरों का नजाकत से दमकता हार और अंगूठी पहन, पूर्वा नें खुद को नज़र भर आईने में निहारा और मुस्कान से खिल गयी. आनंदित मन से मुस्कुराते गुनगुनाते हुए झूला झूलते-झूलते अक्षय का इंतज़ार करने लगी.

आठ बजे के बाद भागते-भागते अक्षय घर पहुँचा, और जल्दी-जल्दी वो भी तैयार हो गया. अक्षय लिफ़ाफ़े पर अपना विज़िटिंग कार्ड स्टेपल कर ही रहा था, कि पूर्वा नें पूछा, “अक्षय, मैं कैसी लग रही हूँ?” पर ज्यादा गौर न करते हुए वो बोला, “हाँ अच्छी लग रही हो, अब जल्दी से ताला बंद करो.”

दोनों आयोजन स्थल पर पहुंचे, तब तक दावत शुरू हो चुकी थी, सारे मेहमान आ चुके थे, आयोजन स्थल की जगमग रौशनी और सजावट देखते ही बनती थी. दोनों साथ-साथ सब लोगों से मिलने लगे. तभी मिस्टर मसेज़ चड्ढा दिखे, आपस में औपचारिक बातचीत हुई, अक्षय की नज़र मिसेज़ चड्ढा के हीरों के लोकेट पर पडी और उन लोगों के जाते ही पूर्वा से झल्लाकर बोला, “तुम्हें तो समाज में सिर्फ बेज्ज़ती करानी होती है, इतना भारी हीरों का पेंडेंट सैट लेकर दिया था तुम्हे अभी, फिर भी इतना गंदा सा हार पहन कर आयी हो, ज़रा सी भी अक्ल नहीं है तुम्हें, तुमको तो जेवर लेकर देना ही बेकार है.” पूर्वा के चेहरे का रंग उड़ गया, वो धीरे से बोली, “मैंने पूछा तो था, मैं कैसी लग रही हूँ.” “अरे! मुझे क्या पता था तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है और सारी चीजें मुझे ही देखनी पड़ेंगी” अक्षय बोला और नज़रों-नज़रों में ही उसे तिरस्कृत करता रहा, मानो शर्म आ रही हो उसे पूर्वा को अपने साथ ला कर. पर पूरी पार्टी में पूर्वा सूनी आँखें लिए सिर्फ मुस्कुराती रही. शायद डमी की आखों में आंसुओं की भी ज़गह नहीं होती.

Views: 887

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 30, 2012 at 11:05pm

//कई परिस्थितियों में कई अक्षय भी पूर्वा के मान की चिंता करते देखे गए हैं.... और इसके पलट ऐसी भी कई पूर्वा हैं जो कितने ही अक्षय को खून के आंसू रुलाती होंगी.//

जय होऽऽऽऽ ...  इसे कहते हैं डिसर्निंग आई की परख. .. :-))))

खैर, यह तो मज़ाक हुआ. वैसे, इस तथ्य को मात्र गंभीरता से नहीं वैचारिकता के प्रिज़्म गुजार कर समझने की आवश्यकता है. किसी के जीवन की रेखा इतनी सरल नहीं होती.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 30, 2012 at 10:52pm

आदरणीय नादिर खान जी, आपने इस लघुकथा पर अपने बहुमूल्य विचार दिए, आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 30, 2012 at 10:47pm

स्वागत है प्रिय पियूष जी, आप इस लघु-कथा पर दुबारा पहुंचे एक नए बिंदु के साथ. यह कहानी ऐसी झूठे दिखावे की मानसिकता के प्रति वेदना व्यक्त करती है. 

यह दिखावा एक आरोपित दिखावा है, जिसमें सोचने की बुद्धि क्षण भर को काम नहीं करती, अन्यथा अक्षय भी दिल-दिमाग ज़रूर रखता होगा  और पूर्वा  के सम्मान की रक्षा भी कई परिस्थितियों में करता ही होगा.

हर मनुष्य की ज़िंदगी के कई आयाम होते हैं, जहां यकीनन कई परिस्थितियों में कई अक्षय भी पूर्वा के मान की चिंता करते देखे गए हैं.... और इसके पलट ऐसी भी कई पूर्वा हैं जो कितने ही अक्षय को खून के आंसू रुलाती होंगी. :)))))))))

Comment by नादिर ख़ान on November 30, 2012 at 10:32pm

वाकई हम लोग झूठे दिखावे की तरफ भाग रहे है।

जहाँ किसी के इमोशन की कद्र ही नहीं है ।

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 30, 2012 at 9:59pm

आदरणीय प्राची दी... कथा का एक बिंदु यह भी समझा जा सकता है कि हर अक्षय आदि के सम्मान की चिंता हर पूर्वा आदि को तो  करनी पड़ती है, पर क्या कोई अक्षय भी किसी पूर्वा के सम्मान की चिंता करता है ?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 30, 2012 at 5:15pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, 

बिलकुल सही कहा आपने, "घटना के अनहद को समझने की आवश्यकता है, जिसके स्वर अपने सुर में सामाजिक रूप से अपरिहार्य हो चले व्यावसायिक वर्ग की मानसिकता को संप्रेषित करते हैं."......कामयाबी का होड़ बन जाना और उसको प्रदर्शित करने का माध्यम महिलाओं के गहनों, कपड़ों, कारों के नये से नए मोडल रखना, पार्टियों में नयी नयी मदिराओं के साथ साथ ही अब तो नृत्यों को भी पेश किया जाना......ओह्ह ! अंतहीन बर्बादी की तरफ बढ़ती होड़.

"जब कामयाबी होड़ बन जाय तो देखने समझने का नज़रिया ही वक्र हो जाता है. फिर संबंध तक उपयोगी अवयव मात्र रह जाते हैं जिनकी उपयोगिता सफलता की दौड़ में एक सहारे भर की होती है."................फिर सम्बन्ध आत्मिक तुष्टि न देकर दिखावा और कामयाबी के दिखावे की  चर्चा, एहमियत बनने लगते हैं...

किस बर्बादी की ओर बढ़ रहे हैं समाज की संपत्ति, शक्ति और साधन.

इस लघु-कथा प्रयास को आपने सराहा और यह आपके मस्तिष्क में पैठ बनाने के सफल हो सकी, यह जान कर लेखन कर्म को प्रोत्साहन मिला है, इस हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 30, 2012 at 4:50pm

प्रिय शालिनी कौशिक जी,

आपको यह अभिव्यक्ति पसंद आयी, इस लिए हार्दिक आभार!

purush nari ko yahi samajhta hai kamal hai ki ye bat poorva nahi samjh payi.

यह कहानी सम्पूर्ण नारी वर्ग  या पुरुष मानसिकता का जनरल रीप्रेसेंटेशन न हो कर एक वर्ग विशेष की एक छोटी सी मानसिकता को दर्शाने के लिए लिखी गयी है. किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व में सिर्फ एक आरोपित बिहेवियोरल डिसओर्डर का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष का बुरा हो जाना या सम्पूर्ण पुरुष वर्ग का गलत हो जाना कदापि नहीं होता.

इसलिए पूर्वा ये क्यों समझे कि पुरुष नारी को यही समझता है? जबकि घर परिवार समाज में ऐसे पुरुषों की भी कोई कमी नहीं जहां नारी के  सम्मान के लिए नारियों से ज्यादा पुरुष प्रबलता से खड़े होते हैं. सस्नेह.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 29, 2012 at 10:30pm

उच्च वर्ग के एक जोड़े से ताल्लुक रखती नितांत व्यक्तिगत सी घटना के अनहद को समझने की आवश्यकता है, जिसके स्वर अपने सुर में सामाजिक रूप से अपरिहार्य हो चले व्यावसायिक वर्ग की मानसिकता को संप्रेषित करते हैं. जब कामयाबी होड़ बन जाय तो देखने समझने का नज़रिया ही वक्र हो जाता है. फिर संबंध तक उपयोगी अवयव मात्र रह जाते हैं जिनकी उपयोगिता सफलता की दौड़ में एक सहारे भर की होती है. फिर तो क्या सहचरी, वह भी ’प्रेजेंटेबल हो’ की अपेक्षा को संतुष्ट करती एक विन्दु भर रह जाती है.

बहुत ही सधे शब्दों में आपकी लघु-कथा मस्तिष्क में पैठ बना लेती है. बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ, डॉ.प्राची.

Comment by shalini kaushik on November 29, 2012 at 9:31pm

purush nari ko yahi samajhta hai kamal hai ki ye bat poorva nahi samjh payi.sundar prastuti badhai prachi ji


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 29, 2012 at 6:59pm

यह वाकिये समाज में होते रहना आम है, क्योंकि लोग अपनी पसंद नापसंद से ज्यादा दूसरे क्या सोचेंगे , मैं दूसरे से कमतर क्यों दिखूं, ऐसा सोचते हैं, आप द्वारा इसे प्रभावशाली सम्प्रेषण करार दिया जाना लेखन के प्रति आश्वस्त कर रहा है, इस हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
7 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service