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घण्टियों की

खनखनाती खिलखिलाहट  

से गूँज उठी

हर पूजास्थली..

मन्नत की

लाल चूनर और रंगीन धागों के

ग्रंथिबंधन में आबद्ध हुए सारे स्तम्भ

और बरगद पीपल की हर शाख..

माँ के दर फैलाये झोली,

जोड़े कर, झुकाए सर,

नवदम्पत्ति मांग रहे हैं भिक्षा-

पुत्र रत्न की...

और हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं !!!

****************************************

उड़ान भरने को व्याकुल

पर फड़फड़ाते घायल परिंदे सा बेबस

सहमा सिसका

संघर्षरत

अपने वजूद को तलाशता

शोषण दोषण मोषण से आक्रान्त

कुकृत्यों के कुहासों में

नित दफ़न होता

नारी अस्तित्व.....

क्या आज फिर महिला दिवस है ?

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 11:52pm

रचना पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया विनीता शुक्ला जी.. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 11:50pm

रचना के मर्म को छूने के लिए हार्दिक आभार प्रिय संदीप जी 

Comment by Vinita Shukla on March 8, 2013 at 9:08pm

नारी- जीवन की विडम्बना का मार्मिक और प्रभावी चित्रण. बधाई डॉ. प्राची जी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 8, 2013 at 4:52pm

ऐसे दिवस मनाये क्यूँ जाते हैं ये तो आचरण में लाने की चीज़ है

बहुत अच्छी रचना सुन्दर भाव से भरी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 3:30pm

रचना पर आपकी सराहना और अनुमोदन के लिए आभार प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 3:28pm

सादर आभार आ. विजय जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 3:28pm

आदरणीय राजेश झा जी, 

महिला दिवस का इतिहास १५० वर्ष से भी ज्यादा पुराना है... पर महिलाओं की स्थिति पूरे विश्व में आज भी बहुत बहुत दयनीय ही है..

कोइ एक भी राष्ट्र ऐसा नहीं जहां महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए जाते हों...

और कितना वक़्त चाहिए इस एक दिवस को विश्व में महिलाओं के लिए व्यापक बदलाव लाने हेतु. 

बस एक दिन की जागृति, आन्दोलन, रैली, चर्चा से क्या नज़रिया बदल जाएगा..... यदि बदल सकता तो मेरे द्वारा लिखी गयी क्षणिकाएं सत्य न होतीं.

मैंने नकारात्मकता को नहीं, अपितु यथार्थ को शब्द रूप में प्रस्तुत करने की चेष्टा की है. 

फिर भी आपकी बधाई इस रचना पर प्राप्त हुई, जिस हेतु आपकी हृदय से आभारी हूँ.

Comment by ram shiromani pathak on March 8, 2013 at 3:18pm

उड़ान भरने को व्याकुल

पर फड़फड़ाते घायल परिंदे सा बेबस

सहमा सिसका

संघर्षरत

अपने वजूद को तलाशता

शोषण दोषण मोषण से आक्रान्त

कुकृत्यों के कुहासों में

नित दफ़न होता

नारी अस्तित्व.............कैसा महिला दिवस ?

 समाज की मानसिकता को सही पहचाना आपने आदरणीया प्राची मैम..............भाव पूर्ण रचना...हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 3:13pm

Thanks Dr. Ajay Khare  for you wishes on this expression of thoughts.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2013 at 3:11pm

आदरणीया अरुणा कपूर जी,

क्या एक दिन महिला दिवस घोषित कर दिये जाने से कुछ होगा.. बाकी ३६४ दिन का क्या?

महिलाओं को नहीं चाहिए सिर्फ ये एक दिन...जबकि हर वक़्त उनको भी उतने ही सम्मान का आधिकार है जितना किसी भी नागरिक का होना चाहिए. 

रचना के भाव आपको पसंद आये इसके लिए आपकी आभारी हूँ .सादर.

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