For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ तुम ममता का मूर्त रूप
तुम सतरंगी स्नेह -आँचल
तुम मंदिर प्रांगन सी पवित्र
तुम पावन -पुनीत गंगाजल
टेढ़ा -मेढ़ा विकट जीवन जगत
तुम सीधी-सादी सरल प्रांजल
छल ,छदम ,कपट चारों तरफ़
माँ तेरी गोदी निर्मल ,निश्छल
पावक ,अनल सामान जीवन
तुम चन्दन की छाया शीतल
तेरे आशीषों की ज्योत्सना से
पथ मेरा नित -नित उज्जवल
पाने तेरा वात्सल्य सोम -सुधा
ज़न्म-ज़न्म पी लूँ जीवन गरल
तेरी कोख पाने की अभिलाषा में
स्वयं -भू भी है आतुर प्रतिपल
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by asha pandey ojha on May 8, 2010 at 9:57pm
Preetam ji,Ganesg bhaiya &Admin ji..ma..ko ek din kya tmam jindgee arpan ..par aaj ise post karne ka mtlab tha ki maa ke charno ka ek baar punh smran..aap sabhee ko mmtr divas kee bahut bahut shubh kamnayen..!
Comment by Admin on May 8, 2010 at 8:47pm
"माँ" एक छोटा सा शब्द, लेकिन इस छोटे से शब्द मे ममता का ऐसा समुन्द्र समाया है जिसको थाह पाना हम सबके बस मे नही है, हालाकि प्रत्येक दिन ही माँ को समर्पित है फिर भी एक खाश दिन को माँ को विशेष रुप से समर्पित करना अच्छा है, तथा इस खाश दिन पर आपकी खाश कविता बहुत ही प्यारा है, बहुत बहुत धन्यबाद है आपको यह कविता पोस्ट करने पर ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 8, 2010 at 5:38pm
तुम मंदिर प्रांगन सी पवित्र
तुम पावन -पुनीत गंगाजल
टेढ़ा -मेढ़ा विकट जीवन जगत
तुम सीधी-सादी सरल प्रांजल

आशा दिदी, मदर डे के अवसर पर माँ को समर्पित यह कविता अत्यन्त ही प्रसंसनीय है, बहुत ही खुबसुरत रचना है,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 8, 2010 at 5:35pm
bahut badhiya likha hai aapne didi......
माँ तुम ममता का मूर्त रूप
तुम सतरंगी स्नेह -आँचल
तुम मंदिर प्रांगन सी पवित्र
तुम पावन -पुनीत गंगाजल
Comment by asha pandey ojha on May 8, 2010 at 4:21pm
Aapka bahut bahut aabhar Ravi Kumar ji ..!
Comment by Rash Bihari Ravi on May 8, 2010 at 4:07pm
माँ तुम ममता का मूर्त रूप
तुम सतरंगी स्नेह -आँचल
तुम मंदिर प्रांगन सी पवित्र
तुम पावन -पुनीत गंगाजल
टेढ़ा -मेढ़ा विकट जीवन जगत
तुम सीधी-सादी सरल प्रांजल
छल ,छदम ,कपट चारों तरफ़
माँ तेरी गोदी निर्मल ,निश्छल
man ko mugdh karte sabd bahut badhia

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service