For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस देश का संबल बनो

नव पीढी तुम इस देश का संबल बनो
माहौल कीचड़ है तो क्या तुम कमल बनो
जो जलना चाहता है उसके लिए अंगार बनो
चैन-सुकूं जो चाहे उसके लिए जलधार बनो
चंड-प्रचंड ज्वाला कहीं, कहीं गंगाजल बनो
नव पीढी तुम .......
माहौल कीचड़ ........
वतन की खुशहाली तेरी आँखों का सपन हो
दिल में हो वतन परस्ती,सर पर कफ़न हो
हर क़दम हो दृढ़ता भरा,कभी न विचल बनो
नव पीढी तुम ......
माहौल कीचड़ ........
तोड़ दो उन हाथों को जो छीनते ग़रीब का निवाला
वतन से जो करते ग़द्दारी, कर दो उनका मुंह काला
अमा की इस रात को परास्त कर, तुम चांदनी धवल बनो
नव पीढी तुम .........
माहौल कीचड़ .......
जाति-धर्म की मानसिकता से तुम्हे उबरना होगा
मन में सिर्फ़ एकता-अखंडता का भाव भरना होगा
आज़ादी के इस खेत में प्रेम भाईचारे की फसल बनो
नव पीढी तुम .......
माहौल कीचड़ .....
अधिकारों के मद में अपने कर्तव्यों को मत भूलो
उड़ान हौसलों की ऐसी हो कि हर बार गगन छूलो
सारी सृष्टि नत-मस्तक हो जाये,तुम इतने मुकम्मल बनो
नव पीढी तुम .....
माहौल कीचड़ है ........
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Views: 900

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 11, 2011 at 6:20am
आशा दी ! बहुत अच्छी और दिल की बात .....खूबसूरत और प्रभावी काव्य के लिये बधाई !! और हां आपकी वो गज़ल मैं पढ़ना चाहता हूँ कृपया लिंक भेज सकें तो अच्छा होगा ... |
Comment by Shaileshwar Pandey ''Shanti'' on October 18, 2010 at 9:49pm
तोड़ दो उन हाथों को जो छीनते ग़रीब का निवाला
वतन से जो करते ग़द्दारी, कर दो उनका मुंह काला
अमा की इस रात को परास्त कर, तुम चांदनी धवल बनो
नव पीढी तुम .........

Asha Ji, ati sundaar rachana hai aap ki. Is ka missal nahi, aaj ke nayi pithi ko is se bahut kuch sikh malta hai. Kash ham aap ki is rachana ko amal me late to samaj me antar ki jo khayi hai wah bhar jati...Dhanyavaad...Ma Saraswati aap ki kalm ko aur shakti de.
Comment by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 12:04am
ना पूज्या ब्नो ना पुजारी तुम
Comment by asha pandey ojha on May 17, 2010 at 12:12am
aap sabhee ka bahut bahut aabhar ..15 din ke liye bahr ja rahee hun ..aap sabhee se punh lout kar miltee hun..!
Comment by aleem azmi on May 16, 2010 at 4:45pm
bahut sundar rachna hai aapki asha ji ....aap tareef ke patra...bahut khoobsurat me har alfaaz ko apne tareeke se darshaya hai ...bahut umda...likhte rahiye
best regards
aleem azmi
Comment by asha pandey ojha on May 16, 2010 at 1:52pm
आप द्वारा प्रशंसा में कहे हुए दो शब्द मेरी कलम में कभी ना ख़त्म होने वाली स्याही का काम करेंगे ....आप की दुआएं बन सकती है कभी ना मिटने वाले अक्षर
Comment by asha pandey ojha on May 13, 2010 at 10:52pm
जाने क्यों पर में जब भी कलम उठाती हूं हर बार अपने वतन पे लिखने को जी चाहता है ..के बार पाठक टोक भी देतें हैं ..पर मन ही नहीं भरता मैं क्या करूँ ...मैं तो चाहती हूं मेरा हर लफ्ज़ वतन के लिए निकले ..योगी राज जी सर की पंक्तियाँ भी बहुत कमाल की है ..गणेश भैया ,रवि कुमार जी ,प्रीतम जी आप सभी का बहुत बहुत आभार ...!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2010 at 9:05pm
Waah Asha didi waah, Nav Pidhi ko dhyan mey rakhkar likhi gai yey aapki kavita Bahut hi sunder hai,
तोड़ दो उन हाथों को जो छीनते ग़रीब का निवाला
वतन से जो करते ग़द्दारी, कर दो उनका मुंह काला,
Bahut badhiya line, aur wospar Yograj bhaiya ka 4 line
"डुबा सके ना अब अमन का अफताब कोई
बड़ा शसक्त सा दुश्मन को दो जवाब कोई !
अपनी हिम्मत की ऐसी बाड़ रच दो सीमा पे
पाँव रखने ना पाए मुल्क में कसाब कोई !
soney mey suhaga ho gaya hai, Bahut sunder aur sasakt abhivyakti,Badhiya hai didi,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 13, 2010 at 3:55pm
आशा जी , नि:शब्द कर दिया है आपकी इस प्रभावशाली कविता ने, इसलिए आपके ख्यालों की तर्जुमानी करते हुए मैं भी नौजवान पीढ़ी को एक सन्देश ही देना चाहूँगा:

"डुबा सके ना अब अमन का अफताब कोई
बड़ा शसक्त सा दुश्मन को दो जवाब कोई !
अपनी हिम्मत की ऐसी बाड़ रच दो सीमा पे
पाँव रखने ना पाए मुल्क में कसाब कोई !
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 13, 2010 at 2:27pm
नव पीढी तुम इस देश का संबल बनो
माहौल कीचड़ है तो क्या तुम कमल बनो
जो जलना चाहता है उसके लिए अंगार बनो
चैन-सुकूं जो चाहे उसके लिए जलधार बनो
चंड-प्रचंड ज्वाला कहीं, कहीं गंगाजल बनो
bahut hi badhiya rachna hai asha didi..........mujhe jo line sabse jyada pasand aaya wo maine likh diya hai.........
dhanyabaar asha didi post karne ke liye....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"कृपया देखियेगा सादर जान फँसती है जब भी आफ़त में सर झुकाते हैं सब इबादत में 1 और किसका सहारा होता है…"
53 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया रचना जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका, गुणीजनों की सलाह से ग़ज़ल सुधार करती हूँ सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सुझाव बेहतर हैं सुधार करती हूँ सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत मुआफ़ी चाहती हूँ आगे से ख़याल रखूँगी, सच है आपने बहुत बार बताया है, इतनी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए, 8th शेर हटा देती हूँ सादर"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। हम भटकते रहे हैं…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"ग़ज़ल वो दगा दे गए महब्बत मेंलुट गए आज हम शराफत में इश्क की वो बहार बन आयेथा रिझाया हमें नफासत…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी तरही मिसरे पर आपने ख़ूब ग़ज़ल कहीं। हार्दिक बधाई। अमित जी की टिप्पणी के अनुसार बदलाव…"
12 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, मेरा आशय है कि लिख रहा हूँ एक भाषा में और नियम लागू हों दूसरी भाषा के, तो कुछ…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"... और अमित जी ने जो बिंदु उठाया है वह अलिफ़ वस्ल के ग़लत इस्तेमाल का है, इसमें…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
".हम भटकते रहे हैं वहशत में और अपने ही दिल की वुसअत में. . याद फिर उस को छू के लौटी है वो जो शामिल…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service