For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा मिस- झुक -लुक -लुक -छुप

हवा मिस- झुक -लुक -लुक -छुप


डार-डार से करे अंखियां चार


कस्तूरी हुई गुलाब की साँसें


केवड़ा,पलाश करे श्रृंगार


छूते ही गिर जाये पात लजीले


इठलाती-मदमाती सी बयार


सुन केकि-पिक की कुहूक-हूक


बौरे रसाल घिर आये कचनार


अम्बर पट से छाये पयोधर


सुमनों पर मधुकर गुंजार


कुंजर,कुरंग,मराल मस्ती में


मनोहर,मनभावन संसार


यमुना- तीरे माधव बंशी


फिर राधे-राधे करे पुकार


नख-शिख सज चली राधे-रमणी


भर मन-अनुराग अपरम्पार




मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rash Bihari Ravi on December 10, 2010 at 3:45pm

vah khubsurat manmohak

Comment by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 2:51pm

अहा !वाह वाह ! क्या रवानगी है |शब्द जैसे झरने से झर रहे हों |

Comment by Chhavi Chaurasia on June 12, 2010 at 3:29pm
हवा मिस- झुक -लुक -लुक -छुप डार-डार से करे अंखियां चार
कस्तूरी हुई गुलाब की साँसें केवड़ा,पलाश करे श्रृंगार..... बहुत ही खूबसूरत और मनभावन कविता है. ख़ासकर पहली लाइन ...हवा मिस- झुक -लुक -लुक -छुप ...पढ़ने मे एक अलंकार की अनुभूति होती है.
Comment by aleem azmi on June 9, 2010 at 1:01pm
mam bahut umda ...ati sunder

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 9:36am
छूते ही गिर जाये पात लजीले
इठलाती-मदमाती सी बयार
सुन केकि-पिक की कुहूक-हूक
बौरे रसाल घिर आये कचनार

बहुत बढ़िया लिखी है आशा दीदी, काफ़ी सुंदर रचना बन पड़ी है,
Comment by asha pandey ojha on June 8, 2010 at 11:45am
admin ji ,satish ji ,Sanjiv ji Preetam ji & yograj ji sir ...aap sabhee ka bahut bahut aabhar ..ye rachna padh kar housla afzai karne ka ....dil se shukriya ..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 7, 2010 at 7:59pm
कमाल की कविता कही है आशा जी, एक एक पंक्ति में संगीत है! //कस्तूरी हुई गुलाब की साँसें //
गुलाब की सांसें ??? वाह वाह वाह इतने कोमल भाव और सोच की इतनी ऊंची उड़ान? हद है हद ! इसके आगे नि:शब्द हूँ , जय हो !
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 7, 2010 at 6:56pm
bahut hi badhiya rachna hai asha didi......aisehi likhte rahe...
Comment by sanjiv verma 'salil' on June 7, 2010 at 6:43pm
मुझको यह रचना रुची
Comment by satish mapatpuri on June 7, 2010 at 5:01pm
अम्बर पट से छाये पयोधर


सुमनों पर मधुकर गुंजार


कुंजर,कुरंग,मराल मस्ती में


मनोहर,मनभावन संसार
आशा जी, हर कवि को कुदरत की शै लुभाती है, पर आपका यह चित्रण वाकई काबिले तारीफ़ है, धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service