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ग़ज़ल - मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए !

ग़ज़ल -

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।

गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए ।

नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान 
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।

घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।

रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।

मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।

                                - अभिनव अरुण 
                                  [14052013]

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Comment by Abhinav Arun on May 17, 2013 at 3:31pm

दिली धन्यवाद श्री पाठक जी !!

Comment by Abhinav Arun on May 17, 2013 at 3:29pm

बहुत आभार आदरणीय श्री ,आपका स्नेह निरंतर प्रेरणा स्रोत का कार्य कर रहा है, निखार लाने का प्रयास जारी है  ! 

Comment by Abhinav Arun on May 17, 2013 at 3:27pm

धन्यवाद सतवीर वर्मा जी रचना के भाव आपको पसंद आये !!

Comment by Abhinav Arun on May 17, 2013 at 3:27pm

बहुत शुक्रिया नीरज जी !!

Comment by Abhinav Arun on May 17, 2013 at 3:26pm

आदरणीय डॉ राज जी रचना आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका !!

Comment by DrRaaj on May 17, 2013 at 11:35am

अति सुन्दर रचना |बधाई स्वीकार करें |

Comment by बृजेश नीरज on May 16, 2013 at 11:37pm

बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! ढेरों बधाई स्वीकारें।

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 16, 2013 at 6:37pm
वाह! वाह! आ॰अभिनव अरुण जी, आपकी ग़जल नें तो दिलोदिमाग के तारों में झनझनाहट पैदा कर दी। वर्तमान भारतीय संसदीय व्यवस्था और राजनीतिक गिरावट पर आपके शब्द निर्माण की सुन्दरता देखते ही बनती है।
अतिशय सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2013 at 10:16pm

वाह वाह ! भाई अभिनव अरुण जी, आपकी ग़ज़ल नये परवान को चढती दिख रही है. बहुत दिल से अश’आर कहे हैं आपने

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई लें..

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2013 at 11:48am

 वाह वाह सर जी वाह!  बहुत-बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें,   सादर,

कृपया ध्यान दे...

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