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गज़ल --" क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है "

2122    2122   2122    2122

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क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है

 

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

 

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है

 

गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है

 

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  

 

बातिलों में वज़्न कितना ?झूठ की औकात कितनी ?

क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है

                 ***************

मौलिक एवँ अप्रकाशित्

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Comment by शिज्जु "शकूर" on August 22, 2013 at 9:47pm

///क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है///   वाह आदरणीय गिरिराज सर बहुत खूब

//बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है//  बहुत खूबसूरत सोच है वाह

//गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है// मुहब्बत और नफरत में टकराव वाह!

//दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  //  दिल को छूने वाली बात कही है आपने

//क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है// आदरणीय गिरिराज सर कृपया इस मिसरे की तक्तीअ पुनः करके देखें

अपनी इस रचना के लिये बधाई कुबूल करें

Comment by ram shiromani pathak on August 22, 2013 at 9:30pm

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है//वाह वाह

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  ///वाह वाह क्या कहने  

हुत ही सुन्दर आदरणीय  //बहुत बहुत बधाई आपको //सादर 


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 9:03pm

बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिये , नीरज भाई

Comment by Neeraj Nishchal on August 22, 2013 at 8:57pm

क्या बोलूं जब कोई इतना लाजवाब लिख जाए ।
तारीफ़ करने पर आऊं तो एक किताब लिख जाए ।

आदरणीय गिरिराज भाई एक एक शब्द में सच्चाई है ।
और हर एक अशयार में बहुत ही ज्यादा गहराई है ।

बहुत+बहुत+ .....................दिली शुभ कामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 8:21pm

शुक्रिया , जितेन्द्र भाई आप की सराहना ही हमारा उत्साह  है  !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 22, 2013 at 8:10pm

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है ............वाह! क्या खूब कहा.. जानलेवा शेर है , बहुत पसंद आया

तहे दिल से दाद कुबूल कीजियेगा आदरणीय गिरिराज जी

 

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