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गज़ल ----" इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है "

2122     2122     2122

पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से      

क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से

मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल  

हर किसी को पूछना है तिश्नगी से         

इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है

लग रहे हैं ख़ौफ़ खाये रौशनी से

आदमीयत की महज़ तो आरजू है

और हमको चाहिये क्या आदमी से

धर्म सारे चल नदी में हम सिरा दें

धूल खाते लटकते जो अलगनी से

.

          गिरिराज भंडारी

 मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 12:10pm

आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!

Comment by vijay nikore on August 30, 2013 at 11:38am

//आदमीयत की महज़ तो आरजू है

और हमको चाहिये क्या आदमी से//

बहुत खूबसूरत शेर है। बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2013 at 9:39pm

आदरणीया प्राची जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 27, 2013 at 9:17pm

आदमीयत की महज़ तो आरजू है

और हमको चाहिये क्या आदमी से... बहुत सुन्दर!

उम्दा गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आ० गिरिराज भंडारी जी 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2013 at 9:38pm

आदरणीय आशीष भाई , रचना की सराहना के लिये बहुत बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2013 at 9:37pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , उत्साह वर्धन के लिये बहुत शुक्रिया !!

Comment by ram shiromani pathak on August 26, 2013 at 8:38pm

आदमीयत की महज़ तो आरजू है

और हमको चाहिये क्या आदमी से///उम्दा

 

बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें।  सादर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 8:37pm

इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है

लग रहे हैं ख़ौफ़ खाये रौशनी से  !!     वाह वाह बहुत खूब  !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2013 at 8:28pm

केवल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 8:25pm

आ0 भण्डारी भाई जी, वाह!  लाजवाब गजल।  हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें।  सादर,

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