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रात भर सोया नहीं

बस सोचता रहा

कब काली रात जायेगी

रवि अपनी किरणें फैलाएगा


बहुत लम्बी रात थी

जो नहीं था उसे खोजता रहा

अंतहीन धुंध के खौफ से

डरता कांपता

बार-बार खुद से यही पूछता

क्या सफल हो पाऊंगा?

सुबह हुई

पर कोई नयापन नहीं

अचानक

चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा

एक भी पत्ते नहीं थे

शायद !मुझसे कह रहा था

धैर्य रखो बसंत आने तक।
*******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 2:02pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय   राज जी अमूल्य सुझाव के लिए   //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 2:02pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय   विजय निकोर   जी  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 2:01pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय भाई ब्रिजेश जी,रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 2:00pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय   विजय मिश्र   जी  //सादर 

Comment by विजय मिश्र on September 4, 2013 at 1:46pm
आस-भरोस पर ही दुनिया टिकी है ,सुंदर सम्प्रेषण ,बधाई राम शिरोमणिजी .
Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 1:32pm

आदरणीय राम भाई! बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति! यह रचना आपके प्रयासों की सफलता को इंगित करती है। आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijay nikore on September 4, 2013 at 1:13pm

अति सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by राज़ नवादवी on September 3, 2013 at 10:28pm

अच्छा प्रयास है. 'एक भी पत्ते नहीं थे' को 'एक भी पत्ता नहीं था' कर लें. अंग्रेज़ी में हालांकि ऐसा लिख सकते हैं- 'there were no leaves'. 

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 8:42pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय श्याम जुनेजा  जी,स्नेह यूँ ही बनाए रखें  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 8:37pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीय रविकर  जी //सादर 

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