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!!! सुख सभी तो चाहते हैं !!!
गजल बह्र - 2 1 2 2 2 1 2 2

प्रेम  पूंजी  बांटते  हैं।
सुख सभी तो चाहते हैं।

दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।

सुख बड़े चंचल भटक कर,
पल में घर से भागते हैं।

रोशनी जब भी निकलती,
चांद - सूरज  ताकते  हैं।

फिर कभी उलझन न होती,
सांझ सुख मिल बांटते हैं।

चांदनी जब तरू में उलझी,
वृक्ष  साया  शापते  हैं।

गर किसी ने की मुहब्बत,
धर्म मुश्किल सालते हैं।

कर्म की राहें सफल नित,
कृष्ण - अर्जुन बाचते हैं।

दुःख है तो दर्द मरू सम,
शांत मन सुख धारते हैं।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 8, 2013 at 8:32pm

आ0 मीना पाठक जी,    आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन  हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 8, 2013 at 8:31pm

आ0 भण्डारी भाई जी,    आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन  हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 5:12pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी, सादर अभिवादन!

दुःख अपना कौन बांटे, 
साये पल्ला झाड़ते हैं।... यही है जीवन ...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 8, 2013 at 9:04am

केवल भाई, छोटी बहर में कहन निभाना हमेशा चैलेंजिंग रहा है, आपने इस ग़ज़ल को निभा ले गयें हैं, मुझे बहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल, बधाई हो । 

Comment by vandana on September 8, 2013 at 6:27am


दुःख अपना कौन बांटे, 
साये पल्ला झाड़ते हैं।

बहुत बढ़िया गजल  आदरणीय केवल जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 8, 2013 at 12:12am

दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।......बहुत सुंदर

सुंदर रचना , बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 10:46pm

दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।.........बहुत खूब
बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2013 at 8:35pm

वाह वा , आदरणीय केवल भाई , छोटी बह्र मे बढ़िय़ा गज़ल कही !!

दुःख है तो दर्द मरू सम,
शांत मन सुख धारते हैं। ------------- क्या बात है !!

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