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कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है

जख़्म लेकिन, कही हरा भी है

जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर

प्यार से दिल मेरा भरा भी है

ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा

थक के हारा, कभी मरा भी है

बात करता है वो महज़ सच की

सरफिरा है मगर खरा भी है   

जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ

हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है

ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी

स्वाद मीठा है चरपरा भी है  

कोई कहता मुझे,मै खुश होता

तू कहीं से गज़ल सरा भी है

  मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 1:08pm

आदरणीय बृजेश भाई , सराहना के लिये आपका आभार !! किस शब्द के बारे मे आप कह रहे हैं , अगर बता दें तो कुछ समझ आये , अगर आपका इशारा चरपरा की ओर है तो ये सही है , चर्परा और चरपरा दोनो सही है , अगर कोई और शब्द है तो कृपा कर बतायें !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 12:48pm

आदरणीय , विजय भाई , आपने तो खुश ही कर दिया , मै अभी गज़ल सीख रहा हूँ , सराहना के लिये नौत शुक्रिया !! स्नेह बनाये रखें , और शिल्प की गलती ज़रूर बतायें !! सादर !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 12:45pm

आदरणीय , राज नवादवी भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका  हार्दिक आभार , स्नेह ऐसे ही बनाये रखें , और अगर शिल्प मे गलती हो तो ज़रूर बतायें , संलोच न करें !! गज़ल अभी मै सीख रहा हूँ !! सादर !!

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 12:43pm

वाह! बहुत सुन्दर! कथन में बहुत अच्छी और कसी हुइ गज़ल। आपको हार्दिक बधाई!
हिन्दी के हिसाब से कुछ शब्दों के हिज्जे देख लें।
सादर!

Comment by विजय मिश्र on September 13, 2013 at 12:34pm
हाँ गिरिराजजी न सिर्फ आप गजल सरा हैं बल्कि अच्छी गजल लिखते हैं . इस सुंदर रचना केलिए बधाई |
"बात करता है वो महज़ सच की
सरफिरा है मगर खरा भी है |" -- मन में सीधा उतर गया ,बात भी और बात में नेकदिली का वजन भी .
Comment by राज़ नवादवी on September 12, 2013 at 10:51pm

बहुत खूब, सुन्दर मतला- 

'कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है

जख़्म लेकिनकही हरा भी है'

Comment by Parveen Malik on September 12, 2013 at 10:14pm
बहुत बढिया गजल ... सादर !

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 7:05pm

आदरणीय केवल भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 12, 2013 at 6:44pm

आ0 भण्डारी भाई जी,   उम्दा गजल, शानदार ख्याल...वाह...वाह!   हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:36pm

आदरणीय अरुण भाई , गज़ल के कई शे र आपको पसन्द आये , मेरे किये खुशी और उत्साह वर्धन की बात है !! आपका आभार !!

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