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"इक तो तू  रोज दारू पीकर आता है, रोज समय से पहले भाग जाता है...और जो काम बताओ, उसे पूरा ही नहीं करता...ऐसा कर, कल से काम पे आना बंद कर..समझ !" रामेश्वर ने रोज रोज से तंगाकर गुस्से में कहा..

लखन ने बिना पछतावा किये, वहां से जाते हुए कहा..."अपने को क्या, सरकार इतना सस्ता राशन दे रही है, बच्चे स्कूल में दिन को खा ही आते है, घरवाली मजूरी करती ही है....अपनी बोतल...."

जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व्  अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 8:30pm

रचना पर आपने बहुत सटीक कहावत कही है, आदरणीय सुरेन्द्र जी, आपका बहुत बहुत आभार, आशीर्वाद बनाये रखिये

सादर!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2013 at 6:17pm

सरकारी राहत पर अच्छा व्यंग किया है | इसके लिए बधाई | दरअसल सामाजिक चेतना और नैतिक शिक्षा की आवश्यकता 

है, तभी समाज में अपेक्षित सुधार हो सकेगा |  


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Comment by rajesh kumari on September 15, 2013 at 5:40pm

जो निठल्ले निकम्मे होते हैं वो एक दिन में नहीं बन जाते सरकार राहत दे न दे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता बेवडे को सिर्फ दारु चाहिए परिवार का पेट कैसे भर रहा है उनको कोई सरोकार नहीं ऐसे इंसान हर कदम पर मिल जायेंगे बस लात पदनी चाहिए ऐसे लोगों को मर भी जातें हैं तो परिवार को कर्जबंद और  कर जाते हैं ,बहुत अच्छे मुद्दे पर लिखा है आपने आपकी लघुकथा सम्पूर्ण कथा कह रही है यही इसकी खासियत है बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र गीत जी  

Comment by वेदिका on September 15, 2013 at 4:46pm

बहुत बढ़िया व्यंग किया है आपने जितेंद्र गीत जी!

दरअसल ऐसा तो नहीं है की सरकार बिगाड़ रही है| सरकार संवार ही रही है| और बहुत से नौनिहाल सरकार के इस कदम से पोषित हो रहे है, जो बच्चे पहले मजूरी करने जाया करते थे, वे अब स्कूल मे खाना खा कर शोषण से तो मुक्त हुये| मेरे विचार से इसके शीर्षक के लिए और भी समय देना चाहिए था| 

यह कहानी लखन जैसे उन लोगों के लिए है जो एक सड़ी मछली बनकर पूरी राहत व्यवस्था को कलंकित करते हैं| ऐसे कारनामे के खुलासे के लिए विशेष बधाई लीजिये जितेंद्र जी!

लघुकथा मे आपकी महारत दिन पर दिन सुखकर प्रयास के रूप मे देखने को मिल रही है !! :-)

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 3:41pm

बहुत खूब जीतेंद्र भाई क्या कहने बहुत बहुत बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 12:25am

सरकार बिगाड़ रही है या सवांर रही है...यह तो भगवान ही जाने,  सरकार की ऐसी बहुत सी गरीबों के लिए योजनायें चल रही है,

आपको लघु कथा पसंद आयी, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 12:14am

आदरणीय वीनस जी , ऐसा ही हो रहा है, सरकार गरीबों को भूखे पेट न रहना पड़े, शायद इसलिए ऐसी सुबिधा दे रही है, परन्तु  गरीब अपने शौक के लिए, उस सस्ते अनाज को भी, अधिक कीमत में बाजार में बेच आता है,

रचना पर दृष्टी डालने हेतु ,आपका बहुत बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 12:07am

आपका कहना बिलकुल सही है, आदरणीय सौरभ जी,  रचना पर समय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार,

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:59pm

जी बिल्कुल सही बतला रहे हैं आप, हुआ तो मोबाईल ही क्या, मोटरसायकिल भी मिल सकती हैं..

लघुकथा आपको अच्छी लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश बागी जी

सादर!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 11:58pm

जी जितेन्द्र भाई जी ..अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम ...की अवधारणा वाले ऐसे बड़े लोग मिल जायेंगे निठल्ला तो बन ही जा रहे हैं गुणात्मकता काम काज की शून्य की तरफ ...सुन्दर लघु कथा

भ्रमर ५
प्रतापगढ़

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