आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त
प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल
मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मीना पाठक जी
दोहावली का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए हृदय तल से आभार
प्रिय अरुण शर्मा 'अनंत' जी
दोहा दर दोहा अपनी सहज प्रतिक्रया देने के लिए बहुत बहुत अभार..
वाह वाह आदरणीया क्या ही ग़ज़ब की दोहावली रची है आपने
सादर बधाई स्वीकारिये इस सुन्दर रचना पर
दोहावली को समय दे कर रसास्वादन करने के लिए आभार आ० जीतेंद्र जी
परम को समर्पित इस अभिव्यक्ति पर आपकी सराहना मिली
सादर धन्यवाद आ० विजय जी
आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत ..... अति सुन्दर .. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आ० प्राची जी
आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत ..वाह अत्यंत सुन्दर
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह अनुबंध ...अय हय हय अत्यंत मनोहारी
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव ... सुन्दर सत्य
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त ... लाजवाब उम्दा
प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल
मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल ... क्या कहने दीदी बहुत ही उम्दा
आदरणीया प्राची दीदी अत्यंत सुन्दर मनोहारी हृदयस्पर्शी दोहावली प्रस्तुत की है आपने हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव....बहुत सुंदर
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त .......बेहद गहन सोच का चित्रण
अनुपम दोहावली, बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी
रससिक्त, मनमोहक भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया।
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