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कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं
हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता नहीं
मेरी क़िस्मत खोज कर के थक गयी मुझको वहाँ
जिन ठिकानो पर कभी मै भूल कर रहता नहीं
मुश्किलें खुद राह देंगीं रास्ते पर आ उतर
ताल सड़ जाता है सुन ले, जो कभी बहता नहीं
हाथ काटे जा चुके हैं फिर तू आंखें लाल कर
आग सीने में अगर हो, चुप कभी सहता नहीं
मुश्किलों से इस क़दर तू आज रंजीदा न हो
कौन ऐसा सूर्य है , राहू जिसे गहता नही
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी , आपका मेरी गज़ल पर आना ही मेरा उत्साह वर्धन के लिये बहुत काफी है !! आपका बहुत आभार !!
आदरणीय रविकर भाई जी , रच्ना की सराहना के लिये आपका आभार !!!!
आदरणीय अरुण भाई उत्साह वरधन के लिये आपको हार्दिक धन्यवाद , आभार !!
आदरणीय सन्दीप भाई , हौसला अफज़ाईके लिये आपका दिली शुक्रिया !!
आदरणीय विजय भाई . गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!
मुश्किलें खुद राह देंगीं रास्ते पर आ उतर
ताल सड़ जाता है सुन ले, जो कभी बहता नहीं----बेहतरीन शेर हुआ वाह आदरणीय गिरिराज जी क्या कहने आपकी इस ग़ज़ल के ,बहुत अच्छी लगी दिली दाद कबूलें
///हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता नहीं
मेरी क़िस्मत खोज कर के थक गयी मुझको वहाँ
जिन ठिकानो पर कभी मै भूल कर रहता नहीं/// वाह आदरणीय गिरिराज सर दिल को छूने वाले अशआर हैं दाद कुबूल करें
आदरणीय जीतेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!
आदरणीय नीरज भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!
वाह !-वाह ! मन मोह लिया आपकी सुंदर गज़ल ने ! हार्दिक बधाई !
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