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स्वच्छ गगन मे - कविता

स्वच्छ गगन मे

सुवर्ण सी धूप

भोर की किरण ने

आ जगाया ।

अर्ध उन्मीलित नेत्र

उनींदा  मानस

आलस्य पूरित

यह तन मन

पंछियों ने राग सुनाया ।  

कामिनी सी कमनीय

सौंदर्य की प्रतिमा

नैसर्गिक छटा

फैली चहुं ओर

मुसकाते सुमन

झूमते  तरुवर

नव जोश जगाया ।

हुआ प्रफुल्लित ये मन

तोड़ कर मंथर बंधन

मानो  रोली कुमकुम

आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 1:39pm

आ0 प्राची जी आपको रचना अच्छी लगी , आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 1:38pm

आ0 जितेंद्र जी आपका हरदिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 1:38pm

आ0 कुंती जी आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 2:53pm

भोर की किरण की ताजगी और प्रातः की सुन्दरता को बहुत सटीक अभिव्यक्ति मिली है 

हुआ प्रफुल्लित ये मन

तोड़ कर मंथर बंधन

मानो  रोली कुमकुम

आ छिड़काया ................सुन्दर 

हार्दिक शुभकामनाएं आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:40am

सुंदर शब्दों से प्रकृति का खुबसूरत चित्रण, बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 1:07am

प्रभात का बहुत सुंदर वर्णन.

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 9:23pm

आपको रचना अच्छी लगी , मेरा लिखना सफल हुआ , आपका हार्दिक आभार आदरणीय लड़ी वाला  जी । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2013 at 7:35pm

प्रकृति का चित्रण पढ़कर मन हर्षित हुआ | बधाई आदरणीया 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 6:52pm

आ0 आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 4, 2013 at 4:06pm

प्रकृति का मनोहारी चित्रण करती ..मन को हरने वाली शानदार रचना ..सादर बधाई के साथ 

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