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गजल: याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना//शकील जमशेदपुरी//

बह्र— 2122/2122/2122/22

थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना
याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना

प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको
ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना

तरबियत आंसू की कुछ ऐसे किया है हमने
अब तो मुश्किल है मेरे गम का दिखाई देना

याद आती है जुदाई की घड़ी जब हमको
तो शुरू होता है चीखों का सुनाई देना

बिन तेरे खुश रहने का इल्जाम था सिर मेरे
काम आया मेरे अश्कों का सफाई देना

जब भी रूठा हूं मनाती है वो ऐसे मुझको
रोते बच्चे को किसी मां का मिठाई देना

हाल इसने यूं बना रक्खा है बंदी की तरह
कैद से अपने मेरे दिल को रिहाई देना

-शकील जमशेदपुरी

___________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Abhinav Arun on October 13, 2013 at 3:14pm

जब भी रूठा हूं मनाती है वो ऐसे मुझको
रोते बच्चे को किसी मां का मिठाई देना

...बेहतरीन अश'आर जनाब मोहतरम शकील साहिब ..बहुत मुबारकबाद इस जिंदाबाद लाजवाब ग़ज़ल के लिए !!

Comment by शकील समर on October 13, 2013 at 10:41am

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' साहब
हौसला अफजाई के लिए बहुत—बहुत शुक्रिया।

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 10:40am

अच्छी ग़ज़ल !!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:38am

थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना
याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना....वाह! बहुत ही शानदार मतला

प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको
ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना.......बहुत सटीक सुंदर शेर

हाल इसने यूं बना रक्खा है बंदी की तरह
कैद से अपने मेरे दिल को रिहाई देना.......यह तो जानलेवा हुआ

सच! बहुत लाजवाब गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शकील साहब

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