बह्र: 1222/1222/1222/1222
मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती
सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती
ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती
नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती
-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एंव अप्रकाशित
Comment
वाह शकील साहब .. किस सफ़ाई से पिरोया है आप ने हर अशआर को ... जैसे मला के मोती ...क्या बात, क्या बात क्या बात
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती
दो शेर, दोनों शेर का आकाश कितना अलग ! लेकिन कितना विस्तृत !
पूरी ग़ज़ल असीम संभावनाओं से भरी हुई है. आपकी ग़ज़लों और रचनाओं का इंतज़ार रहेगा.
विश्वास है, सुधीजनों द्वारा बताये गये सुझावों पर ध्यान देंगे. शुभेच्छाएँ
आदरणीय वीनस जी,
सबसे पहले तो आभार आपका। जो थोड़ी बहुत बह्र और गजल शिल्प की समझ विकसित कर पाया हूं, वो आपकी ही बदौलत है। आपने जो इस्लाह किया है, उसके लिए धन्यवाद। आगे भी ऐसी ही अपेक्षा रहेगी। एक बार पुन: आपका आभार इतनी विस्तृत विवेचना के लिए।
कमाल धमाल बेमिसाल ग़ज़ल कही है भाई ,,,, एक एक शेर कबीले तारीफ़
मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती........... जिंदाबाद
सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती............. जिंदाबाद
ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती ........ कभी के बाद भी शब्द भर्ती का है इसे हटाना होगा ,, शेर अच्छा है
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती ........ अच्छे ढंग से कहा ... बहुत खूब
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती ............ बेमिसाल शेर है ... जितनी तारीफ़ करू कम
नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती ............ बहुत खूब . सही लफ्ज़ जेह्न २१ होता है
मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती,, उफ उफ...समां बाँध दिया मतले ने
नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती.... ईमानदारी हद से भी ज्यादा खूबसूरती से पेश हुयी
इतनी खूबसूरत गज़ल पर दिली दाद कुबुलें !!
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती,,,,,,nayab .....shandaar .....utkrast......
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती............wah wah wah wah
नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती...............kya kahoo ........no words .....lots of thanks ...for sharing this class of poetry ...........
waah waah waah ... aapne to gajab dha diya शकील जमशेदपुरी saahab .... is gazal ki jitni bhi tareef ki jaaye kam hai .... aakhiri ke char sher bahut hi umda hai .... bahut bahut badhai ... aur is star ki rachna ham logon tak pahunchaane ke liye dher sara dhanyavaad bhi
जनाब शकील साहिब ....आपने दिल छू लिया
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती....बेमिशाल
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती....उम्दा :)
ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती
नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय शकील जी
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती..... वाह.... क्या शेर कहा आदरणीय शकील भाई.... बधाई स्वीकारें...
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