बह्र : 1222/1222/1222/1222
तुम्हारे प्यार का सिर पर अगर आंचल नहीं होगा
मेरे जीवन में खुशियों का तो फिर बादल नहीं होगा
यकीनन कुछ न कुछ तो बात है तेरी अदाओं में
ये दिल यूं ही तुम्हारे प्यार में पागल नहीं होगा
तुम्हें कुछ दे न पाऊंगा मगर धोखा नहीं…
Added by शकील समर on May 16, 2014 at 6:16pm — 20 Comments
बह्र : 1222/1222/1222/1222
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तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था
समझ लेना ये तेरे दिल में रहने का किराया था
सुनो वो गांव अपना इसलिए मैं छोड़ आया हूं…
Added by शकील समर on May 15, 2014 at 4:14pm — 13 Comments
बह्र : 2122/2122/212
बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां
आज फिर उसने किया है मुझको याद
आज फिर अच्छी लगीं हैं हिचकियां
खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा [बाद-ए-सबा = सुब्ह की हवा]
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां
तेरी जुल्फों से उलझती है हवा
काश मैं भी करता यूं अठखेलियां
दिल तो तेरे नाम से मंसूब था [मंसूब= निर्दिष्ट, Assign]
यूं बहुत आई थी दर पे लड़कियां
जब…
Added by शकील समर on May 2, 2014 at 6:00pm — 15 Comments
बह्र : 212/212/212/212
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तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए
तितलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए
है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए
प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए
चांद से आपकी क्यों बहस हो गई
ऐसे वैसों के मुंह मत लगा कीजिए
यूं मकां है मगर घर ये हो जाएगा
बनके मेहमान कुछ दिन रहा…
Added by शकील समर on April 22, 2014 at 3:00pm — 18 Comments
बह्र : 221/2121/1221/212
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किरदार मेरा अपनी सहेली से पूछना
औ लम्स* मेरा अपनी हथेली से पूछना *[स्पर्श]
मैं इक खुली किताब हूं तू खुल के बात कर
मुझसे न कोई बात पहेली से पूछना
पहले तो मुझसे कहना किसी और की हूं मैं
फिर हाल-ए-दिल हमारा सहेली से पूछना
बेदर्द वक्त कितना है हो जाएगा पता
खंडर हुई है कैसे हवेली से पूछना
खुशबू तुम्हारे जिस्म की है जानता 'शकील'
अच्छा नहीं सहन* की…
Added by शकील समर on April 14, 2014 at 11:30pm — 11 Comments
बह्र : मात्रिक बह्र
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तुम तड़पी तो हम भी तरसे, ये भी तुमको मालुम हो
तुमसे ज्यादा हम टूटे थे, ये भी तुमको मालुम हो
तुमको इसका दुख है तुमने, मेरे खातिर दर्द सहा
हम भी तेरी याद में रोए, ये भी तुमको मालुम हो
मेरा ऊँचा बंगला जाने, दुनिया को क्यों खलता है
एक समय था दर-दर भटके, ये भी तुमको मालुम हो
बस देख के उनकी सूरत को, उनको अच्छा मत जानो
इक चेहरे पे कितने चेहरे, ये भी तुमको मालुम हो…
Added by शकील समर on March 3, 2014 at 4:00pm — 7 Comments
बह्र: 2122/2122/212
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दीप मेरा दुनिया को है खल रहा
जब से ये बादे मुखालिफ जल रहा
फिर वही बेचैनियां और मन उदास
ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा
चांद को अब सौंप कर सब रोशनी…
Added by शकील समर on November 12, 2013 at 11:07pm — 17 Comments
बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122
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ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी
चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से
लगी चोट दिल पर…
Added by शकील समर on October 23, 2013 at 1:36pm — 19 Comments
बह्र: 212 212 212 212
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प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई
देख कर पीर पलकें दुखी हो गई
तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई
संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई
प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई
शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई
कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक…
Added by शकील समर on October 20, 2013 at 5:30pm — 15 Comments
बह्र: 2122 1122 1122 22
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जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी
फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी
प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो
क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी
कान किसने भरे उसके वो खफा है…
Added by शकील समर on October 19, 2013 at 1:10pm — 13 Comments
बह्र: 221 2121 1221 212
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बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर
शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर
मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही
जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’…
Added by शकील समर on October 18, 2013 at 9:00am — 20 Comments
बह्र: 221/2121/1221/212
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दर पे कभी किसी के भी सज्दा नहीं किया
हमने कभी जमीर को रुसवा नहीं किया
हमराह मेरे सब ही बलंदी पे हैं खड़े
पर मैंने झूठ का कभी धंधा नहीं किया
जाने न कितनी रात मेरी आंख में कटी…
Added by शकील समर on October 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
बह्र— 2122/2122/2122/22
थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना
याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना
प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको
ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना
तरबियत आंसू की कुछ ऐसे किया है हमने
अब तो मुश्किल है मेरे गम का दिखाई देना
याद आती है जुदाई की घड़ी जब हमको
तो शुरू होता है चीखों का सुनाई देना
बिन तेरे खुश रहने का इल्जाम था सिर मेरे
काम आया मेरे अश्कों का सफाई देना
जब भी रूठा हूं…
Added by शकील समर on October 12, 2013 at 3:30pm — 24 Comments
बह्र: 1222/1222/1222/1222
मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती
सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती
ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती
पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती
सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से…
Added by शकील समर on October 8, 2013 at 1:00pm — 21 Comments
गजल— 1121/2122/1121/2122
तेरे रूप का ये जादू कहीं मुझपे चल न जाए
यूं बिखेरो ना ये जुल्फें कहीं दिल मचल न जाए
मेरे दिल की इस जमीं पे कोई फूल खिल रहा है
तेरे प्यार का ये मौसम कहीं फिर बदल न जाए
तूने खोल दी है जुल्फें लगे दिन चढ़ा है फिर से
'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए'
तेरी याद का है जंगल यहां आग सी लगी है
मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए
इसी सोच में हूं डूबा कि…
Added by शकील समर on October 6, 2013 at 11:12am — 19 Comments
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