For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल : बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां//शकील जमशेदपुरी

बह्र : 2122/2122/212


बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां

आज फिर उसने किया है मुझको याद
आज फिर अच्छी लगीं हैं हिचकियां

खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा          [बाद-ए-सबा = सुब्ह की हवा]  
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां

तेरी जुल्फों से उलझती है हवा
काश मैं भी करता यूं अठखेलियां

दिल तो तेरे नाम से मंसूब था          [मंसूब= निर्दिष्ट, Assign]
यूं बहुत आई थी दर पे लड़कियां

जब से आई है मेरे कॉलेज में वो
अच्छी लगती हैं नहीं अब छुटि्टयां

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे
हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां

-शकील जमशेदपुरी

_____________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1133

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on May 29, 2014 at 10:00pm

सुन्दर एवं शानदार ग़ज़ल कहने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. शकील जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 3:15am

मज़ा आ गया.. दाद कुबू्ल करें, शकील भाई.

जब से आई है मेरे कॉलेज में वो  ...    वो ? ये अधिक नहीं है ?

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:36am

बहुत ही सुन्दर गजल! आदरणीय शकील जी!

Comment by रमेश कुमार चौहान on May 5, 2014 at 10:10pm

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां---------अच्छा प्रयोग
बधाई बधाई

Comment by suvarna on May 5, 2014 at 8:51pm

खुशबू तेरी लाएगी बाद-ए-सबा            
खोल दी कमरे की मैंने खिड़कियां

रूठने का राज मैं समझा 'शकील'
कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां............ बढ़िया ग़ज़ल शकील जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 5, 2014 at 8:45pm

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे
हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

वाह खूबसूरत ग़ज़ल भाई शकील जी !!

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:35am

बिंदी, काजल, झुमके, बेसर, चूड़ियां
पास वो रखतीं हैं कितनी बिजलियां.....क्या बात है. बिजलियाँ क्या गिरती भी थी...शकील भाई.दाद कूबूल करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 7:32pm

आदरणीय शकील भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिली दाद कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 12:24pm

बहुत खूब आदरणीय शकील भाई अच्छी ग़ज़ल कही है आपने

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 3, 2014 at 11:18am

नाम तेरा आ गया लब पर मेरे हो गईं मुझसे खफा सब तितलियां

 

रूठने का राज मैं समझा 'शकील' कान भरतीं हैं तुम्हारी बालियां

आदरणीय शकील जी
बहुत खूब.. क्या कहने
इस शरारती ग़ज़ल पर मेरी तरफ से मुबारकबाद. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
24 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service