बह्र : 212/212/212/212
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तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए
तितलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए
है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए
प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए
चांद से आपकी क्यों बहस हो गई
ऐसे वैसों के मुंह मत लगा कीजिए
यूं मकां है मगर घर ये हो जाएगा
बनके मेहमान कुछ दिन रहा कीजिए
फिर कहीं होने पाए न ये हादसा
दिल किसी का न टूटे दुआ कीजिए
यादों की इन सलाखों में घुटता है मन
हो गई इंतहा अब रिहा कीजिए
बस गुजारिश है इतनी मेरी आपसे
हंस के दुनिया से मुझको विदा कीजिए
-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है। बधाई।
तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए
तितलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए
बस गुजारिश है इतनी मेरी आपसे
हंस के दुनिया से मुझको विदा कीजिए
shakil bhai bahut khubsurat gazal hui haih mubarakbad kubul kijie
है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए....बिलकुल सही
प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए.....आपका दावा हकीकत बने
यादों की इन सलाखों में घुटता है मन
हो गई इंतहा अब रिहा कीजिए..बहुत बढ़िया ...भाई शकील जी इस कामयाब ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर
जी...जी आदरणरीय गिरिराज सर, सहमत हूं आपकी बात से दुरुस्त कर लूंगा। आभार।
आदरनीय शकील भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशाअर लाजवाब हुये हैं , दिली दाद कुबूल करें ॥
एक छोटी बातें कहना चाहता हूँ - हंस को हँस कर लीजियेगा , क्योंकि हंस भी एक शब्द है , एक पक्षी का नाम है ।
आप सभी का हृदय से आभारी हूं।
खूबसूरत अश’आर हैं शकील साहब। दाद कुबूल कीजिए
वाहहहहहहह वाहहहहहहहहहहहह
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