बह्र: 221 2121 1221 212
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बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर
शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर
मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही
जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’
रख दी गजल में तूने मुहब्बत निचोड़ कर
- शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एंव अप्रकाशित
Comment
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर .... वाह क्या रवां दवां मिसरा हुआ है ... शानदार
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर ... बहुत खूब
नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’
रख दी गजल में तूने मुहब्बत निचोड़ कर... वाह वा
बहुत खूब भाई मुकम्मल ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद
बहुत ही बेहतरीन..ग़ज़ल..शकील साहब....ढेरों..दाद.....
शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर...........बहुत उम्दा तख़य्युल....!!!!
वाह वाह आदरणीय सभी अशआर अच्छे हुए हैं
दिली दाद क़ुबूल करें
जय हो
बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर.. वाह बहुत खूब
बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर....... क्या बात है शकील भाई..... बहुत अच्छे..... अब ज़रा उनका नाम भी बता दीजिए..... हा..हा..हा....... इस सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकारें.....
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है! आपको हार्दिक बधाई!
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सादर!
वाह बहुत खूब ....शकील जी ...
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar, Nilesh Shevgaonkar और Nilesh Shevgaonkar जी। आप सबका आभार।
आदरणीय Saurabh Pandey जी
गजल पसंद आई, इसके लिए आपका का आभार।
'गाल' के लिंग भेद में गलती हो गई, जिसे सुधार लूंगा।
पुन: आभार।
वाह , बहुत ख़ूब
.
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
वाह
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