बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122
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ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी
चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से
लगी चोट दिल पर कहा उसने जब ये, कि मुझसी न होगी दिवानी तुम्हारी
सरे राह तुम मिल गई यूं लगा था, कि आसान है अब सफर जिंदगी का
झुका कर निगाहों को तुमने कहा था, कि बनकर रहूंगी मैं रानी तुम्हारी
मकां मेरे दिल का है उजड़ा हुआ सा, यहां खिलती थी प्यार की भी कली कुछ
तलाशी जो ली इस बयाबान की तो, मिलीं चिट्ठियां कुछ पुरानी तुम्हारी
भले नफरतों का रहे बोलबाला, मगर मेरा विश्वास भी कम नहीं है
मेरा प्यार हरगिज न इतिहास होगा, ये दुनिया सुनेगी जुबानी तुम्हारी
-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बेहद सुंदर रचना..... शिल्प के विषय में कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि अनभिज्ञता है...... बधाई हो शकील भाई...
आय हाय ..
ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी.....क्या कहने शकील साहब ..वाह :)
आदरणीय सौरभ सर
बेशक जल्दबाजी भी आड़े आ गई है सर। दरअसल गजल मुक्कमल करने के बाद मैं सोचता हूं कि जल्द से जल्द मंच के जानकारों की अदालत में रख दूं, ताकि पता चले कि क्या—क्या दोष है। इसके पीछे मेरी सोच यह रहती है कि इससे सीखने की गति बढ़ जाएगी।
हालांकि अब मैं बिल्कुल भी जल्दबाजी नहीं दिखाउंगा। गलज के दोष को पहले अपने स्तर पर दूर करूंगा, फिर इस मंच पर पोस्ट करुंगा। आशीर्वाद बनाए रखिएगा सर। सादर।
भाई शकीलजी, यदि आपकी अनुवहीता होती तो संभवतः मैं कुछ न कहता. अलबत्ता आपकी जल्दबाज़ी अवश्य आड़े आ गयी है. वर्ना,
मकां मेरे दिल का है उजड़ा हुआ सा, यहां खिलती थी प्यार की भी कली कुछ में व्याकरण दोष न होता.
लेकिन, आपकी काबिलियत के प्रति मुझे कोई संदेह नहीं है.
शुभेच्छाएँ
मकां मेरे दिल का है उजड़ा हुआ सा, यहां खिलती थी प्यार की भी कली कुछ
तलाशी जो ली इस बयाबान की तो, मिलीं चिट्ठियां कुछ पुरानी तुम्हारी ये पंक्तियाँ पसंद आई..इतने बड़े बहर में पहली बार कोई रचना पढी ..भाव पसंद आये ..सादर बधाई के साथ
आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी
हौसला अफजाई के लिए बहुत—बहुत धन्यवाद।
आदरणीय Saurabh Pandey सर
सुझाव देने के लिए सादर आभार। दोहरी बह्र को संभालने में मेरी अनुभवहीनता आड़े आ गई। आइंदा से ध्यान रखूंगा। सादर।
आदरणीय शकील भाई दोहरे बह्र पर आपको प्रयास करते देख बड़ी प्रसन्नता हो रही है आपका का प्रयास मुझे अच्छा लगा इस हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय राम अवध सर एवं वीनस भाई जी की बातों पर गौर फरमाएं.
ओः ! क्या भाईजी !
आपकी इस ग़ज़ल को पढ़ कर ऐसा लगा जैसे मुँह भुट्टे के दानों से अँटा-अँटा कर भर दिया गया हो. दोहरे बह्र के मिसरों की ग़ज़लें जबर्दस्ती के हर्फ़ से बचायी जानी चाहिये.
राम अवध जी ने पते की बात की है.
वैसे आपकी कोशिश भी भली लगी.
आदरणीय वीनस सर,
मेरी गजल पर नजरें अनायत करने के लिए शुक्रिया। ऐब ए शिकस्ते नारवा के बारे में जानने को मिला। आइंदा से ख्याल रखूंगा। सादर।
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