For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब इबादत से न कोई रास्ता मुझको मिलेगा - गज़ल ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122      2122     2122

 

ले   धनक  से  रंग  रंगोली    बना   ले  तू   खुशी  से

बेरहम   है   ये   जहाँ   क्यों   मांगता   है   आदमी से ॥

 

तेरे   ग़म   तेरे    ही  हैं   ये मानता  तू  क्यों   नहीं है

कब   तलक   सोये  रहेगा   जाग जा  अब  बेखुदी से ॥

 

जो ज़ुबाँ   रखते हैं  वो, चुप्पी   सभी ओढ़े   मिले  तो  

बेज़ुबाँ    कोई    मिले    तो    पूछ  उनकी   खामुशी  से ॥

 

कुछ मुझे तू ,कुछ तुझे मै, आ समझ लें बैठ संग में

कुछ        पाया है    किसी ने   बेवज़ह रस्साकशी से ॥

 

जब    इबादत से       कोई   रास्ता  मुझको मिलेगा  

तब    सहारा  माँग लूंगा मै भी इक दिन मयकशी से ॥

 

सब्र  थोड़ा, थोड़ी  रहमत हो  ख़ुदा  की, सब  मिलेगा 

इस तरह  कुछ भी  न पाया है  किसी ने सरकशी से ॥

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 5:56pm

आदरणीय राजेश भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 5:47pm

आदरणीय वीनस भाई आपका शुक्रिया , मै अभी तक व्याकरण की गलती ही खोज रहा था , मै अभी बह्र ठीक कर लेता हूँ ॥ आपका शुक्रिया ।

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 4:54pm

2122     2122      2122     2122

वो  ज़ुबाँ   रख/ ते   जो , चुप्पीसभी ओ / ढ़े   मिले  तो 

आदरणीय मिसरा बेबहर है

Comment by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:41pm

सब्र  थोड़ा, थोड़ी  रहमत हो  ख़ुदा  की, सब  मिलेगा 

इस तरह  कुछ भी  न पाया है  किसी ने सरकशी से ॥

बहुत सुंदर भाव आपने उकेरे हैं आदरणीय, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 3:36pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल भाई , आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 3:35pm

आदरणीय उमेश भाई , सराहना और उत्साह वर्धन क्रे लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 3:34pm

आदरणीय वीनस भाई , मिसरे पर आपका इशारा समझने के प्रयास मे हूँ , अगर आपको उचित लगे तो आप बता दें , अब तक नही समझ पाया हूँ । इशारे के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 3:32pm

आदरनीय राम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2013 at 2:42pm

मित्रानुज

अति सुन्दर i साधुवाद i बेहतरीन गजल i

बेवजह रस्साकशी -----  क्या बात है ?

Comment by umesh katara on December 17, 2013 at 11:06am

वाह वाह अच्छी गज़ल पढने को मिली बधायी हो सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service