कौआ आज फिर प्यासा था। लेकिन अब उसे हर हर रोज़ कंकड़ पत्थर इकट्ठे करते हुए बहुत कष्ट होने लगा था. वह इस रोज़ रोज़ के संघर्ष से मुक्ति चाहता था। फिर एक दिन अचानक ही उसने भगवे वस्त्र धारण कर लिए, माथे पर लंबा सा तिलक लगाया एक बड़ी सी स्टेज सजा कर ‘कांव-कांव’ करने लगा। देखते ही देखते अनगिनत लोग उसके अनुयायी बन उसकी जय जयकार करने लगे । अब वह सयाना कौआ बड़े आराम से दिन भर ‘कांव-कांव’ करता, क्योंकि उसकी ‘भूख’ व ‘प्यास’ का जीवन भर के लिए जुगाड़ हो चुका था।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह! क्या खूब लिखा है, कौवे की बुद्धिमानी या इंसान की नादानी कहें...........'सादर
आदरणीय रवि जी,
भगवा का प्रभाव या कौवे का हृदय परिवर्तन या लोगों का विश्वास या काँव काँव का हिट होना..कई विचार एक साथ मन में घूमने लगे हैं.
सादर.
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