For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम ही कहो अब

क्या मैं सुनाऊँ

सरगम के सुर

ताल हैं तुम से

सारी घटाएँ

बहकी हवाएँ

फागुन की हर

डाल है तुमसे

तुम ही कहो .......

तुम बिन अँखियन

सरसों फूलें

रीते सावन

साल हैं तुमसे

तेरी छुअन से

फूली चमेली

शारद की हर

चाल है तुमसे

तुम ही कहो .......

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 3:01pm

आदरणीय राजेशजी, आप अपनी उक्त रचना पर मेरी टिप्पणी को फिर से देख जायें तथा इस रचना के शिल्प संदर्भ से तुलनात्मक अध्ययन करें. संभवतः बहुत कुछ स्पष्ट हो पायेगा.

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on December 20, 2013 at 1:23pm

आदरणीय, मेरी पिछली कविता पर आपके एवं आदरणीय प्राची जी द्वारा कुछ मार्गदर्शन प्राप्‍त हुए थे, उसी अनुक्रम में तस्‍दीक करना चाहता था कि इस बार कितना सफल रहा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 3:31am

रचना की प्रस्तुति हेतु बधाई 

//इस रचना को मैंनें मात्रिकता एवं गेयता दोनों के लिहाज से सुघड़ एवं गुनगुनाने योग्‍य रखने का प्रयास किया है, इस संबंध में आप सबके स्‍नेह एवं मार्गदर्शन का आकांक्षी हूं,//

आदरणीय, इस उद्घोषणा का अर्थ नहीं समझ पाया मैं. कृपया उन्मीलित करें..

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on December 19, 2013 at 1:22pm

आप सबका हार्दिक आभार, सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 8:37am

सुंदर मनमोहक कविता से मन आनंदित हो गया, आदरणीय राजेश जी हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:20pm

बहुत खूब...

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आ राजेश मृदु जी..

Comment by राजेश 'मृदु' on December 18, 2013 at 5:56pm

मंच के सुधी जनों से कहना भूल गया था कि इस रचना को मैंनें मात्रिकता एवं गेयता दोनों के लिहाज से सुघड़ एवं गुनगुनाने योग्‍य रखने का प्रयास किया है, इस संबंध में आप सबके स्‍नेह एवं मार्गदर्शन का आकांक्षी हूं, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on December 18, 2013 at 5:00pm

आप सबका हार्दिक आभार, सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 12:37pm

राजेश जी

मधुर भावनाओ से सजी इस कविता के लिए आपको साधुवाद i

Comment by savitamishra on December 18, 2013 at 11:48am

sundar

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service