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सोचती हूँ होती मेरी भी एक बिटिया
पढ़ती वो भी बिन कहे दिल की पतिया
भीगती जब असुअन से मेरी अखियाँ
पूछती माँ क्यूँ भीगी तेरी अखिंयाँ
बनाती बहाना चुभ गया कुछ बिटिया
कहती,समझती हूँ माँ तेरे दिल की बतियाँ !!
 

काश होती मेरी भी एक बिटिया
वो पढ़ लेती मेरे दिल की पतियाँ
होती मेरी हमसाया,हमराज,सखी
कहती ना कभी ऐसी बतियाँ
उड़ा देती जो मेरी रातों की निंदियाँ
माँ तुममे भी है कुछ कमियाँ !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:28pm

आदरणीय श्याम नारायण जी बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 10:59am

कहती,समझती हूँ माँ तेरे दिल की बतियाँ !!..sahi me..

माँ तुममे भी है कुछ कमियाँ !!  koun poora hai !

आपकी अनुभूतियो को प्रणाम मीना पाठक mam..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 8:53am

बहुत सुंदर पंक्तियाँ, सच! एक बेटी ही माता-पिता की दिल की बातों को समझ सकती है, इन सुंदर सरल भावनाओं को नमन आदरणीया मीना दीदी

Comment by vandana on December 19, 2013 at 6:45am

बहुत सुन्दर!!!... प्यारे भाव आदरणीया मीना जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 6:46pm

मीना जी

आपकी कविता पढी i मै अपनी बेटी और पत्नी के संबंधो पर विचार करने लगा i  सचमुच बिटिया पिता का प्यार और माँ का सहारा होती है i  आपकी अनुभूतियो को प्रणाम आदरणीया  i

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:09pm

बहुत सुन्दर रचना..

सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना जी...

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 9:56am
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई
Comment by Meena Pathak on December 18, 2013 at 12:11am

बहुत आभार आदरणीया कुंती दी | सादर

Comment by coontee mukerji on December 17, 2013 at 10:52pm

बहुत ही मार्मिक रचना...सादर

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