1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
कहा कब कि दुनिया ये ज़न्नत नहीं है
तुम्हे पा सकें ऐसी किस्मत नहीं है //1//
मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे
पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//
तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//
बहुत सब्र है चाहतों में तुम्हारी
नज़र में ज़रा भी शरारत नहीं है //4//
सुलगती हुई आस हर बुझ गयी, पर
हमें आँधियों से शिकायत नहीं है //5//
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अहा अहा तो आदरणीया राजेश जी आपको सभी शेर पसंद आये.... तो फिर तो बस क्या कहने :D)))))
सादर
आदरणीया अन्नपूर्ण बाजपेयी जी
ग़ज़ल पर आपकी सराहना के लिए सादर आभारी हूँ... आपके सुझाए परिवर्तन से तो मिसरा ही बेबह्र हो जाएगा..:)
स्नेह के लिए धन्यवाद
प्रिय प्राची ग़जल के सभी शेर पसंद आये किन्तु जो सबसे ज्यादा पसंद आया था उसे लिखा था ---
न वादों तलक बढ़ सकेंगे कभी हम
निभाने की जब कोइ सूरत नहीं है -----वाह्ह्ह मेरे ख्याल से ये बेहतरीन रहेगा पूर्णतः भाव स्पष्ट है,बाकी प्रधान सम्पादक जी क्या कहते हैं देखना है .
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीया मीना पाठक जी
ग़ज़ल पर शेर दर शेर आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
अशआर आपको पसंद आये यह मेरे लिए परम सन्तोष की बात है.. सादर धन्यवाद.
आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय जी की छलनी से तो सभी रचनाओं को शुरुवात में गुज़रना ही होता है... :) और आपका पारखी विश्लेषण व मार्गदर्शन सदैव ही सकारात्मक संवर्धन का कारण होता है.
सादर.
आदरणीया राजेश कुमारी जी
ग़ज़ल के कुछ एक शेर आपको पसंद आये ..ये मेरे लिए बहुत संतोष की बात है...
आ० प्रधान सम्पादक जी द्वारा इंगित किये गए शेर में कुछ परिवर्तन सोचे हैं ..देखते हैं सही हैं या गलत :))
सादर धन्यवाद
आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय,
प्रस्तुत ग़ज़ल पर आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत आभार. आप द्वारा सराहा गया शेर मेरे दिल के भी बहुत करीब है.. सादर.
न वादों तलक बढ़ सकेंगे कभी हम
मुकरना हमारी भी आदत नहीं है..............आदरणीय 'हमारी भी' नें दोनों मिसरों को अन्सिन्क्रोनाइज्ड सा कर दिया है...
परिवर्तन के लिए दो ऑप्शन और हैं...
1.
न वादों तलक बढ़ सकेंगे कभी हम
निभाने की जब कोइ सूरत नहीं है
2.
कि वादों तलक हम बढ़ें भी तो क्योंकर
यकीं से बड़ी जब इबादत नहीं है
कृपया एक बार देख कर मार्गदर्शन करें कि कौन सा परिवर्तन सही रहेगा..
सादर.
आदरणीय अविनाश बागडे जी
इस ग़ज़ल प्रयास पर ओबीओ शैली में शेर दर शेर आपके द्वारा उदात्त सराहना मिलना हर्षित कर रहा है
सादर धन्यवाद
आदरणीया वंदना जी
ग़ज़ल के कुछ अशआर आपको पसंद आये, यह जान अच्छा लगा है
सादर धन्यवाद
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