For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ – बाप (क्षणिकाएँ )

(1)

हमारे सपने लेते रहे आकार

बड़े और बड़े

महानगर की इमारतों की तरह

भव्य और विशाल

हमारे सपने

बढ़ते रहे

आगे और आगे..

कभी खुद से

कभी दूसरों से

आगे बढ़ जाने की चाह में 

माँ – बाप की ज़रूरतें

छोटी होती गईं 

टूट चुके गाँव के मकान के बाद 

दो वक्त की रोटी में सिमट गईं।

 

(2)

 

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ ।

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 23, 2013 at 9:29pm

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ ।

मर्मस्पर्शी, बहुत प्रभावित करती पंक्तियाँ बधाई स्वीकारें आदरणीय नादिर साहब

Comment by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 7:04pm

आ0 नादिर भाई जी सुंदर भाव युक्त क्षणिकाएं , दूसरी क्षणिका बहुत ही प्रभाव शाली है । बधाई आपको । 

Comment by savitamishra on December 23, 2013 at 5:01pm

बहुत बढ़िया

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:35pm

आदरणीय बेहद सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ । आदरणीय नादिर जी इन पंक्तियों के लिए विशेषतौर से बधाई स्वीकारें. कमाल कर दिया आपने

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:40pm

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ ।............अनुपम ,,,, सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2013 at 4:30pm

अदरणीय नादिर भाई , लाजवाब क्षणिकाओं के लिये आपको बधाई ॥

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ । .........    बेमिसाल ! आदरणीय ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 10:07pm

अदरणीय, अविनाश जी, डॉ गोपाल नारायण जी, गणेश जी  

आदरणीया,  राजेश कुमारी जी, सविता जी  

आप सबने कविता को सराहा एवं मेरा हौसला बढ़ाया आप सब का शुक्रिया ।

आभार.... 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 20, 2013 at 9:50pm

//

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ ।//

आहा, बहुत ही भावप्रधान रचना, प्रथम प्रस्तुति "क्षणिका" दायरे में आएगी या नहीं इसपर मैं निश्चित नहीं हूँ हालाकि दोनों रचनाएं मुझे अच्छी लगीं, बधाई नादिर भाई |

Comment by savitamishra on December 20, 2013 at 9:03pm

बहुत सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2013 at 7:59pm

सुन्दर भाव युक्त हृदय स्पर्शी क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service