For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँच दोहे : आज के मन-भाव // --सौरभ

मन के सुख-दुख, पीर भी, कैसे पायें भाव
टिप-टिप अक्षर आज के, टेक्स्ट हुए बर्ताव       

चिट्ठी से तब भाव मन, होता था अभिव्यक्त
दिल के आँसू वाक्य थे, शब्द-शब्द थे रक्त

वह भी अद्भुत दौर था, यह भी अद्भुत दौर
अब’ कार्डों से भाव सब, ’तब’ अमराई बौर

हृदय धड़कता आज भी, टेरे भाव महीन  
पर संप्रेषण हो गया, ’यू नो.. आई मीन..’

चला गया जो दौर वो, रह-रह करता हॉण्ट ..
कागज मोनीटर हुए, अक्षर सारे फ़ॉण्ट ..

***************

-सौरभ

***************

(मौलिक व अप्रकशित)

Views: 1149

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 1:24am

आपने इन छंदों के होने का मूल ही साझा कर दिया आदरणीया प्राचीजी. हाँ, यह आवश्य है कि कथ्य प्रस्तुतीकरण के लिहाज़ से मैंने भी एक प्रयोग ही किया है. आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद\


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 1:24am

हार्दिक धन्यवाद आदरणीया अन्नपूर्णाजी

Comment by नादिर ख़ान on January 31, 2014 at 11:39pm

आदरणीय सौरभ सर, नये रूप मे कहे  गए उत्तम दोहे .....

हमेशा की तरह लाजवाब .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2014 at 11:02pm

वाह बहुत बढ़िया आदरणीय सौरभ सर ये दो पीढ़ी का तुलनात्मक अध्ययन आपने बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2014 at 9:49pm

सम्प्रेषण की तकनीकों का दौर जिस तेज़ी से बदल गया.....कि बस देखते ही देखते यादें रह गयी.. अपनों की खुशबू संजोती चिठ्ठियाँ...

हाथों से बने कार्ड और उनमें लिखा गया ओरिजनल कंटेंट, आज के कॉपी पेस्ट फॉरवर्ड शेयर में वो बात कहाँ? तब तो हाथों की लिखावट भी बहुत कुछ बयान कर देती थी! और आज चरण-स्पर्श भी ब्लू-टुथ से हो जाता है  ..हाहाहा :)

बहुत कुछ समेटे इन सहज brilliant दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी

सादर

सादर.

Comment by annapurna bajpai on January 31, 2014 at 9:24pm

आदरणीय सौरभ जी क्या दोहे रचे  है , वाह !! , बहुत बधाई आपको ।  मै तो दोहे लिखना ही सीख रही हूँ आपका अनुमोदन तो सर्व प्रथम मुझे ही चाहिए । सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 9:05pm

//ये जाने वाला तो है नहीं.....इसे गले लगाकर चलना ही श्रेयस्कर है. //

आदरणीया कुन्तीजी,  ये छंद भी किसी दौर की श्रेष्ठता कहाँ बता रहे हैं,  या आज को नकार रहे हैं ? अलबत्ता, ये तो वह भी अद्भुत दौर था, यह भी अद्भुत दौर  कह कर स्वीकार ही कर रहे हैं. और, हर दौर का लिहाज बता रहे हैं.

हाँ, संप्रेषणीयता के मुद्दे पर अवश्य तनिक क्षोभ है और एक छंद को कहना ही पड़ता है - पर संप्रेषण हो गया, ’यू नो.. आई मीन..’.. :-))))

इन छंदों तक पहुँचने और समय देने के लिए सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 8:58pm

सादर धन्यवाद आदरणीया सरिता जी,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 8:58pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी, इस प्रस्तुति को महसूस करने और अनुमोदित करने के लिए सादर धन्यवाद.

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 7:55pm

 वो भी एक दौर था.....ये भी एक दौर है......लेकिन सौरभ जी ये जाने वाला तो है नहीं.....इसे गले लगाकर चलना ही श्रेयस्कर है. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
10 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
22 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service